Friday, January 20, 2012

ऐसी एक कविता



जिसे टेडी बियर की तरह उछाल-उछाल
खेल सके एक बच्चा
जिसे बच्चे की किलकारी समझ
हुलस उठे एक मां

जो प्रतीक्षालय की किसी पुरानी काठ-बेंच की तरह
इतनी खुरदरी हो, इतनी धूलभरी
कि उसे गमछे से पोछ नि:संकोच
दो घड़ी पीठ टिका सके कोई लस्त बूढ़ा पथिक

जो रणक्षेत्र में घायल सैनिक को याद आए
मां के दुलार या प्रेयसी के प्यार की तरह
जो योद्धा की तलवार की तरह हो धारदार
जो धार पर रखी हुई गर्दन की तरह हो
खून से सनी, फिर भी तनी
पता नहीं कब लिख सकूंगा ऐसी एक कविता
आज तक तो नहीं बनी।

- अरुण आदित्य

शुक्रवार की साहित्य वार्षिकी से साभार

16 comments:

डॉ.मीनाक्षी स्वामी Meenakshi Swami said...

सुंदर चाह की सुंदर भावाभिव्यक्ति।
शुभकामनाएं।

जयकृष्ण राय तुषार said...

सर बहुत दिनों के बाद ही सही आपके ब्लॉग पर आपकी यह उम्दा और नए भावों और विचारों से लैस कविता पढ़ने को मिली |आभार

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

गहन अर्थ रखती प्रस्तुति

अजेय said...

बन जाएगी . बस नीयत बने रहनी चाहिए

Arun sathi said...

जरूर लिखी जाएगी सरजी, जब संवेदनाऐं है तो शब्द भी निकल आऐगें और तेज तलवार की धार पर तनी गर्दन भी मिल ही जाएगी। बहुत बहुत बहुत बहुत प्रेरक कविता। आभार।

Ajay K. Garg said...

अरुण जी, ब्लॉग पर नए वर्ष की पहली प्रविष्टि का स्वागत... ऐसी कविताओं की सचमुच तलाश है जो हम सबकी हो, हम सबमें हो....!!!

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

कहा है हमने जो भी बहुत ही कम है
कितना कुछ है जो अब तक अव्यक्त है ।
बहुत खूब

varsha said...

vaah!! kitni khoobsoorat khwahish .

धीरेश said...

यह कविता कई दिन पहले ही पढ़ ली थी और आपकी चाह में शामिल होने का सुख भी लिया। आज दोबारा पढ़ी `शुक्रवार` में। आज ही डाक से यह अंक मिला। `जब कोई कवि नौकरी करता है` भी पढ़ी। कविता और नौकरी...
वहीं मंगलेश जी की पंक्ति गोरख को लेकर लिखी गई टिपण्णी की- कवि की जरूरत किसे है?

प्रदीप कांत said...

बेहतरीन


वक्त लगेगा लेकिन लिखा जाएगी ऐसी कविता

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर.....
हर कवि ह्रदय तरसता है ऐसी कृति के लिए...

सादर.

bhagat said...

yahi hai wo kavita

रश्मि प्रभा... said...

http://adityarun.blogspot.in/2008/01/blog-post_12.html
apni yah rachna mail ker saken to khushi hogi - rasprabha@gmail.com per

प्रदीप मिश्र said...

नयी कविता के लिए बधाई। - प्रदीप मिश्र

प्रदीप मिश्र said...

नयी कविता के लिए बधाई। - प्रदीप मिश्र

रतन चंद 'रत्नेश' said...

बच्चा, माँ, बुढा पथिक, घायल सैनिक, प्रेयसी, योद्धा हो या फिर शाम को थक-हार कर घर लौटा आदमी, सपने बुनती लड़की, बूढ़े बाप की आँखे, अकेली औरत की तन्हाई.....सबको चाहिए अपने-अपने हिस्से की कविता.