लिखो, काटो...फिर लिखो, फिर काटो। इसका क्या कोई अंत है। अंतत: यही सोचकर उपन्यास उत्तर वनवास का अंतिम वाक्य अंतिम बार लिख कर खुद को मुक्त किया। फाइनल स्क्रिप्ट आधार प्रकाशन के संचालक श्री देश निर्मोही जी के पाले में पहुंच गई है। देश जी का कहना है कि जनवरी तक छाप कर ठिकाने लगा देंगे।
उपन्यास का आवरण चित्र सुपरिचित चित्रकार और कहानीकार प्रभु जोशी का है।
उपन्यास का एक अंश साहित्यिक पत्रिका पाखी के दिसंबर अंक में प्रकाशित हुआ है, जिस पर काफी उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं।
एक और अंश साहित्यिक पत्रिका गुंजन के आगामी अंक में आने वाला है।
सब कुछ सामान्य रहा तो बहुत जल्द किताब आपके हाथ में होगी और मेरा सिर कढ़ाई में...