Sunday, January 20, 2008

डर के पीछे जो कैडर है

यह केसरिया करो थोड़ा और गहरा
और यह हरा बिल्कुल हल्का
यह लाल रंग हटाओ यहाँ से
इसकी जगह कर दो काला
हमें तस्वीर के बड़े हिस्से में चाहिए काला




यह देवता जैसा क्या बना दिया जनाब
इसके बजाय बनाओ कोई सुंदर भूदृश्य
कोई पहाड़, कोई नदी




अब नदी को स्त्री जैसी क्यों बना रहे हो तुम
अरे, यह तो गंगा मैया हैं
इन्हें ठीक से कपड़े क्यों नहीं पहनाये
कर्पूर धवल करो इनकी साड़ी का रंग



कहाँ से आ रही है ये आवाज
इधर-उधर देखता है चित्रकार
कहीं कोई तो नहीं है
कहीं मेरा मन ही तो नहीं दे रहा ये निर्देश




पर मन के पीछे जो डर है
और डर के पीछे जो कैडर है
जो सीधे-सीधे नहीं दे रहा है मुझे धमकी या हिदायत
उसके खिलाफ कैसे करूं शिक़ायत?


इस कविता के सहित मेरी पांच कवितायें हरिगंधा पत्रिका में छपी हैं। हरियाणा साहित्य अकादमी की यह पत्रिका काफी समय से निकल रही थी, लेकिन कोई नोटिस ही नहीं लेता था। देश निर्मोही जब से इसके संपादक बने हैं यह वाकई समकालीन साहित्य की पत्रिका लगाने लगी है। हरिगंधा का पता है -
हरियाणा साहित्य अकादमी
169 , sector 12, panchkula-134112

Saturday, January 12, 2008

इस तरह मत आओ जैसे रथों पर सवार आते हैं महारथी

आवाहन

शब्द आओ मेरे पास
जैसे मानसून में आते हैं बादल
जैसे बादलों में आता है पानी

जैसे पगहा तुड़ाकर गाय के थनों की ओर दौड़ता है बछड़ा
जैसे थनों में आता है दूध

इस तरह मत आओ जैसे
रथों पर सवार आते हैं महारथी
बस्तियों को रौंदते हुए
किसी रौंदी हुई बस्ती से आओ मेरे शब्द
धूल से सने और लहू लुहान
कि तुम्हारा उपचार करेगी मेरी कविता
और तुम्हारे लहू से उपचारित होगी वह स्वयं

याचक की तरह मत मांगो किसी कविता में पनाह
आओ तो ऐसे, जैसे चोट लगते ही आती है कराह

संतों महंतों की बोली बोलते हुए नहीं
तुतलाते हुए आओ मेरे शब्द
वस्त्राभूषणों से लदे-फंदे नहीं
नंग-धड़ंग आओ मेरे शब्द

किसी किताब से नहीं
गरीबदास के ख्वाब से निकलकर आओ मेरे शब्द

कि मैं सिर्फ एक अच्छी कविता लिखना चाहता हूँ
और उसे जीना चाहता हूँ तमाम उम्र ।

Monday, January 7, 2008

अ आ यानी...

अ आ यानी वर्णमाला सीखने की शुरुआत !

अ आ यानी भी !

अ आ यानी नसुनी वाज

अ आ यानी पना समान !

अ आ यानी भिव्यक्ति- नंद !

अ आ यानी भय - क्रोश !

अ आ यानी न्तिम दमी !

और अंततः

अ आ यानी रुण दित्य भी समझ सकते हैं !



तो शुरुआत हो चुकी है। और इस शुरुआत का श्रेय है कवि-कथाकार-फिल्मकार उदय प्रकाश को। ब्लाग पर आने को लेकर मन में कुछ उधेड़बुन थी, लेकिन उदय जी से चर्चा के बाद लगा कि अभिव्यक्ति के इस नए माध्यम की ताकत का इस्तेमाल अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए करना चाहिए। इस तरह यह अ आ अब आपके सामने है।

जल्दी ही नई पोस्ट के साथ मिलेंगे।