
युवा कवि विजय गौड़ का कविता संग्रह सबसे ठीक नदी का रास्ता हाल में ही प्रकाशित हुआ है। उसमें कई ऐसी कविताएं हैं जो दिल को छू जाती हैं। उसी संग्रह से कुछ ऐसी ही कविताएं पेश हैं। पढ़ें और अगर अच्छी लगें तो विजय को बधाई दें। अगर संग्रह खरीदना चाहें तो आप सीधे विजय से संपर्क कर सकते हैं।
पिता का नाम
एक
बर्तनों को साफ करते हुए
मां कई बार सहला देती है
पिता को उनके नाम से
जबकि पिता चारपाई पर लेटे हैं
पिता का नाम
हर बार घिसता है
और बर्तनों पर की
पीली चमक-सा
पिता के चेहरे पर
बहुत कोशिशों के बाद
खिंची मुसकान-सा
चमकता है पिता का नाम ।
दो
पिता का नाम
बर्तनों पर ज्यों का त्यों है
सिर्फ नहीं हैं पिता
पिता का नाम ही
चल रहाहै
बर्तनों के साथ-साथ ।
तीन
अभी तो मां जिन्दा है
जो सहला देती है
पिता को उनके नाम से
पर जब नहीं होगीं मां
क्या तब भी सहलाया जायेगा
पिता का नाम ?
चार
ये बर्तन इतने पुराने हो चुके हैं
कि अब
नहीं चल सकता इनसे काम
खरीदनें ही होगें
अब नये बर्तन
पर क्या उन पर भी
लिखा जायेगा
पिता का नाम
जबकि पिता नहीं हैं
मांभी नहीं
सिर्फ हूं में
विजय गौड़ का परिचय
जन्म मई 1968, देहरादून।शिक्षा एम.ए. हिन्दी।रचनाकर्मः रंगकर्म, पहाड़ों के जन जीवन को जानने समझने के लिए दुर्गम पहाड़ीक्षेत्रों की यात्रायें, शतरंज खेलना। कविता, कहानी, समीक्षात्मक टिप्पणी,यात्रा वृतांत और जो कुछ इन सब में न अट पा रहा हो, पर जिसेलिखना जरुरी जान पड़ रहा हो, लिखना। कुछ रचनायें समयांतर, पहल, प्रगतिशील वसुधा, कथन, वागर्थ, कृति ओर, वर्तमान साहित्य, कथादेश, संडे-पोस्ट, शब्द आदि पत्र-पत्रिकाओं में जगह पाती रही। 1989 से 2006 तक लिखी कविताओं का संग्रह ‘‘सबसे ठीक नदी का रास्ता’’ प्रकाशित। 1989-90 के शु3आती दौर में कविता फोल्डर ‘‘फिलहाल’’ का सम्पादन। वर्तमान में इंटरनेट की चिट्ठाकारी ‘‘लिखो यहां वहां’’ चिट्ठे पर समय-समय में लेखन और अन्य रचनाकारों की रचनाओं का प्रकाशन।
चिट्ठे का लिंक: http://likhoyahanvahan.blogspot.कॉम संप्रति ः आर्डनेंस फैक्ट्री देहरादून में कार्यरत।ें
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