Thursday, March 27, 2008

प्रताप सोमवंशी की कवितायें

हमारे मित्र और अमर उजाला, कानपुर के संपादक प्रताप सोमवंशी संवेदनशील कवि हैं। उनकी ये दोनों कवितायें 1993 में जनसत्ता सबरंग के दीवाली विशेषांक में छपी थीं। उसी विशेषांक में मेरी भी एक कविता 'बम्बई इस गाँव के इतने करीब छपी ' थी। इन्ही कविताओं से मैंने प्रताप के कवि को पहली बार पहचाना था। आप देखेंगे कि छपने के चौदह साल बाद भी ये कवितायें कितनी प्रासंगिक हैं। हाल ही में प्रताप को के सी कुलिश अंतरराष्ट्रीय मीडिया मेरिट अवार्ड मिला है। बधाई ।

खाली है


कितना प्रतिभाशाली है

काम नहीं है, खाली है


केवल फल से मतलब है

कैसे कह दूँ माली है


थोड़ा और दहेज़ जुटा

बिटिया तेरी काली है


तुझसे कोई बैर न था

फ़िर क्यों आँख घुमा ली है


फल आने का मौसम है

पेड़ बेचारा खाली है


बाजीगर


लफ्जों का बाजीगर है

कब्जे में पूरा घर है


तेरा हाँ..हाँ..हाँ करना

लालच होगा, या डर है


तू मुझसे क्या छीनेगा

धरती अपना बिस्तर है


उससे कैसी उम्मीदें

पैदाइश से बेपर है


देश हुआ सब्जी मंडी

लाभ में ऊंचा स्वर है


- प्रताप सोमवंशी






Wednesday, March 12, 2008

GAZA का मुसलमां हो या KASHMIR का हिंदू

ये तेरा अँधेरा है, वो मेरा अँधेरा

हर दिल में उतर जायेगी जज्बात की तरह
हो जाए अगर शायरी भी बात की तरह

सूरज है दफ्न फातिहा पढ़ता है अँधेरा
आए न कोई रात यूं गुजरात की तरह

महंगा है इतना सच कि खरीदार नहीं हैं
बाज़ार में कोई कहाँ सुकरात की तरह

गाज़ा का मुसलमां हो या कश्मीर का हिंदू
हर मौत है, इंसानियत की मात की तरह

ये तेरा अँधेरा है, वो मेरा अँधेरा
बांटो न यूं ज़ख्मों को जात-पात की तरह

इस शहर के पत्थर भी होते हैं तर बतर
बरसो तो जरा टूट के बरसात की तरह

सूरज का रंग लाल और लाल दिखेगा
लिखने लगोगे रात को जब रात की तरह

-अरुण आदित्य

Saturday, March 1, 2008

मेरे मठ में मेरा हठ है


सबका अपना-अपना मठ है

मेरे मठ में मेरा हठ है

मैं, मैं, मैं, मैं मंत्र हमारा

मैं की खातिर तंत्र हमारा

मेरा मैं है मुझको प्यारा

मैं अपने ही मैं से हारा

मेरे मैं की जय है, जय है

मेरा मैं ही मेरा भय है

मेरे मैं को आबाद करो

मुझको मैं से आजाद करो

मैं साधू , मेरा मैं शठ है

फ़िर भी मैं की खातिर हठ है।


- अरुण आदित्य