दक्षिण से वाम तक वाम से अवाम तक गूँज रहा है उसका सवाल...
बहुत बढिया कविता सर, कविताएं तो आपकी हमेशा से ही सरल सटीक और एक गहन भाव लिए होती हैं, लेकिन इस बार तारीफ आपके ब्लाग के डिजाइन की करूंगा, पुराना डिजाइन बोर था, यह अच्छा है फिर भी कालीन पर कबीर के पोरों से टपके रक्त की तरह इस डिजाइन में भी एक रंग की कमी खल रही है।
ऊन दिखता है चर्चा होती है, उसके रंग की बुनाई के ढंग की पर उपेक्षित रह जाता है खून बूंद-बूंद टपकता अपना रंग खोता, काला होता चुपचाप- आपकी चारों कविताओं में से कई उद्धरण यहाँ प्रस्तुत किये जा सकते हैं. जब आपकी रचनाएँ पढ़ रहा था तो मन की विचित्र स्थिति थी- कौन सी पंक्तियाँ यहाँ रखूँ ... सभी तो लाजवाब हैं. ऊन और खून की गाथा जीवन के उस यथार्थ को प्रस्तुत करती है, जो आज हर जगह दिखाई देती है. और यह कडुआ सच भी है कि बहुत से ऐसे लोग हैं जो अपने आप को होम कर देते हैं, फिर भी उपेक्षित ही रहते हैं आज के समाज में . बधाई स्वीकारें
4 comments:
good. narayan narayan
बहुत खूब रहे चार यार - अब थोड़ा तिया पांचा कर लें! - याने तीन और होतीं तो इन्द्रधनुष दीखता पांच और तो नवरस का आनंद :-)
दक्षिण से वाम तक
वाम से अवाम तक
गूँज रहा है उसका सवाल...
बहुत बढिया कविता सर, कविताएं तो आपकी हमेशा से ही सरल सटीक और एक गहन भाव लिए होती हैं, लेकिन इस बार तारीफ आपके ब्लाग के डिजाइन की करूंगा, पुराना डिजाइन बोर था, यह अच्छा है फिर भी कालीन पर कबीर के पोरों से टपके रक्त की तरह इस डिजाइन में भी एक रंग की कमी खल रही है।
ऊन दिखता है
चर्चा होती है, उसके रंग की
बुनाई के ढंग की
पर उपेक्षित रह जाता है खून
बूंद-बूंद टपकता
अपना रंग खोता, काला होता चुपचाप-
आपकी चारों कविताओं में से कई उद्धरण यहाँ प्रस्तुत किये जा सकते हैं. जब आपकी रचनाएँ पढ़ रहा था तो मन की विचित्र स्थिति थी- कौन सी पंक्तियाँ यहाँ रखूँ ... सभी तो लाजवाब हैं. ऊन और खून की गाथा जीवन के उस यथार्थ को प्रस्तुत करती है, जो आज हर जगह दिखाई देती है. और यह कडुआ सच भी है कि बहुत से ऐसे लोग हैं जो अपने आप को होम कर देते हैं, फिर भी उपेक्षित ही रहते हैं आज के समाज में . बधाई स्वीकारें
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