नागर जी की ये कविता जब पहली बार पढ़ी तो सचमुच गागर में सागर भरने वाला मुहावरा याद आ गया था। और जब रवीन्द्र की ये पेंटिंग देखी तो फ़िर नागर जी की ये कविता याद आई।रविवार शाम कुछ पुराने मित्रों के साथ नागर जी से आत्मीय मुलाकात हुई। मैंने पूछा कि आपकी कविता अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर दूँ। बोले , बेहिचक डाल दो। रवीन्द्र पहले ही कह चुके हैं कि उनकी पेंटिंग्स का उपयोग करने की पूरी छूट है। तो लीजिये पेश है यह जबरदस्त जुगलबंदी।
जहाँ हरा होगा
जहाँ हरा होगा
वहां पीला भी होगा
गुलाबी भी होगा
वहां गंध भी होगी
उसे दूर-दूर ले जाती हवा भी होगी
और आदमी भी वहां से दूर नहीं होगा।
- विष्णु नागर
14 comments:
नागरजी की यह कविता मुझे भी बहुत पसंद है। और इसके साथ मेरी पेंटिंग लगाने के लिए आभार।
दोनों यहाँ बांटने के लिए आभार
सुंदर कविता, सुंदर पेंटिंग।
बेहतरीन जुगलबन्दी!! आभार.
मैंने पूछा कि आपकी कविता अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर दूँ। बोले , बेहिचक डाल दो।....NAGAR ji se amooman yahi jawab milna tay hota hai. han koi manch janvirodhi hi ho to bat deegar hai. In dino unka gady khaskar kaviyon aur kavitaon par unkee tippaniyan padhi, behad dhardaar, majedaar bhi aur bahut se `bhagwan sahitykaaron` ko chubhne waali bhi
प्रकृति और मनुष्य के
सह संबंध का संसार
समय की पुकार है....यह
कविता कुछ ऐसा ही संदेश
देती प्रतीत होती है.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
मजा आ गया. बेहतरीन जुगलबंदी है.
लगता है पेंटिंग और कविता एक दूसरे को काम्प्लिमेंट कर रही हैं।
रवींद्र, शायदा, डॉक्टर अमर, धीरेश, प्रदीप, महेन, समीर लाल जी और डॉक्टर जैन साहेब, आप सब को बहुत-बहुत धन्यवाद.
दोनों सुंदर.
सुंदर कविता, सुंदर पेंटिंग।
अच्छी जुगलबंदी है अरुण जी !
bahut jyada sundar.
aisa lagta hai ki kavita aur painting ek dusare ke liye hi rachi gayi hain.
santosh k singh.
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