पहाड़ झांकता है नदी में
मनाली पहाड़ झांकता है नदी में
और उसे सिर के बल खड़ा कर देती है नदी
लहरों की लय पर
हिलाती-डुलाती, नचाती-कंपकंपाती है उसे
पानी में कांपते अपने अक्स को देखकर भी
कितना शांत निश्चल है पहाड़
हम आंकते हैं पहाड़ की दृढ़ता
और पहाड़ झांकता है अपने मन में -
अरे मुझ अचल में इतनी हलचल
सोचता है और मन ही मन बुदबुदाता है-
किसी नदी के मन में झांकने की हिम्मत न करे कोई पहाड़-अरुण आदित्य यह कविता मनाली शीर्षक कविता शृंखला की छह कविताओं में से एक है। वागर्थ में प्रकाशित।
साथ में प्रकाशित पेंटिंग विश्वप्रसिद्ध चित्रकार निकोलाई रोरिक की है। पेंटिंग का शीर्षक है-शी हू लीड्स।
32 comments:
सोचता है और मन ही मन बुदबुदाता है-
किसी नदी के मन में झांकने की हिम्मत न करे कोई पहाड़
बहुत बढ़िया .शब्द और पेंटिंग्स भी ..शुक्रिया इसको यहाँ देने के लिए
vaah !
कोई न करे हिम्मत।
नदी के मन में झांके भी तो कैसे
पहाड़ और नदी अपनी नियति से बंधे है और खुश भी,लेकिन किसी नदी के मन मैं झाकने की ...कोई पहाड़ ...पंक्तियाँ अद्वितीय है बधाई.
बहुत बढ़िया.
पहाड़ कहीं का....।
बहुत् ही सुन्दर
वो पहाड़ का मन..
happy diwali..
"नदी के मन men jhankne ki himmat na kare koi pahaad..." bahut umda..
ranjana, pratyaksha, mahen,varsha, vidhu, meet, sochna padega, dhiresh,dr, nazar mehmoodaur abhishek aap sab ko bahut-bahut dhanyavaad. happy diwali.
सर आपकी तस्वीर देखी .हंसमुख चेहरे ने आकर्षित किया आपको देखा ,आपकी कविता देखी =अब उलझन ये हुई की आपको देखूं की आपकी कविता पढूं /आपने देखा शांत निश्चल पहाड़ मेने देखा आपके चेहरे पर शान्ति ,निश्चलता /आपने पहाड़ में द्रढ़ता देखी मैंने आपके विचारों में / जहाँ तक आपका निर्देश है की कोई पहाड़ नदी में न झांके तो यह प्रेक्टिकल न होगा /पहाडों की जन्मजात आदत होती है कि वे नदी में झांकें /और कमोबेश नदी की भी इच्छा तो रहती होगी कि कोई पहाड़ उसको जाने देखे उसकी गहराई की थाह ले उसमें झांके /पहली मुलाकात में इससे ज़्यादा कुछ नहीं /हैपी दिवाली
धन्यवाद ब्रजमोहन जी। वैसे पहाड़ को नदी के मन में झांकने की कोई मनाही नही है, लेकिन उससे पहले पहाड़ को अपने मन में भी झांक लेना चाहिए। उसके बाद भी अगर हिम्मत पड़े तो....
kavita aap
k mukh se sun rakhi hai, kahan hain aaj kal?
bahut ghoom fir k aap k blog tak pahuncha hoon. ise khangaaloonga. aur react karoonga k bhai ne naya kya likha hai in dino......
with regards , AJEY.
बहुत ही अच्छी कविता। बधाई।
Padhvate rahiye
अरुण भाई, यही तो है वो कविता जिसे हिमाचल मित्र में छापने के लिए आप से मांग रहा था.
अद्भुत ...कैसे चूक गया इतनी शानदार कविता ....शीर्षक खास तौर से खीच लेता है .
अचल और अतल में साथ-साथ
हलचल पैदा करती अचूक रचना.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
bahut khoobsurat kavita...aur painting bhi.
Dear sir ,
Aapne es blog par aapni sabhi krutiyon ko bahut aache se piroya hai es ke liye aap bahut badhai ke patra hai , Dhanyawad.
Ashutosh Seetha
Bureaucratsnews.com
arun bhai kavita umda hai isme koi do rai nahi. ab apako padhate rahane ka mouka milega.
Ek bahut achchi kavita ke liye badhai sweekar karen.
guptasandhya.blogspot.com
गहराई....गहराई...
हिम्मत ज़रूर करे पहाड़ नदी में झांकने की
मगर सच्चा पहाड़ ही करे...
उच्चता,कठोरता के दम्भ में चूर न करे
ये हिमाकत
सच्चे पहाड़ ही इस पारदर्शी नतीजे पर पहुंच सकते हैं-
अरे मुझ अचल में इतनी हलचल...
मैंने आज पहली बार आपका ब्लॉग पढ़ा बहुत ही अच्छा और गहराई के साथ लिखते हैं आप. शायद मैं तो उस गहराई को अच्छे से भी न समझा होऊं .
बहुत ही अच्छा.
beautiful.
waah ..kya baat hai
आदित्य जी शा्नदार पेन्टिन्ग और लाजवाब कविता ! मनाली ३ बार तीन टिन सप्ताहो तक रह कर भी वहां से मन नही भरता ! मनाली नाम मे ही जादू है ! फ़िर जाना चाहुन्गा !
राम राम !
अरुण भाई 'शब्द'और 'लोटे' कब पढ़्वाएंगे?
Bahi arun ji ,
thanks for sendin comments.your readers are waiting for new poems pl. post.
is series ki kavitayen aapse kullu mein bahut pahle suni thi...aaj yaadein taaza ho gayi.....mujhe bahut pasand hai ye kavita...jo hamesha bhitar bachi rahi....pradeep saini....
is series ki kavitayen aapse kullu mein bahut pahle suni thi...aaj yaadein taaza ho gayi.....mujhe bahut pasand hai ye kavita...jo hamesha bhitar bachi rahi....pradeep saini....
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