Sunday, September 21, 2008

ज्ञानरंजन के कबाड़खाने से


'भोर' पत्रिका का मुख पृष्ठ और ज्ञान दद्दा
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(करीब डेढ़ दशक पूर्व मैंने और प्रदीप मिश्र ने मिलकर 'भोर - सृजन संवाद ' नामक पत्रिका शुरू की थी। वरिष्ठ कथाकार और हिन्दी की अत्यन्त महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिका 'पहल' के संपादक ज्ञानरंजन जी ने इसका लोकार्पण किया था और उस अवसर पर एक अत्यन्त विचारोत्तेजक व्याख्यान दिया था। बाद में यह व्याख्यान हमने भोर के अगले अंक में प्रकाशित भी किया। भाई रवीन्द्र व्यास ने संभवतः चौथा संसार अख़बार में भी इसे छापा था। ज्ञान जी की पुस्तक कबाड़खाना में भी इसे शामिल किया गया है और ज्ञान जी की उदारता ही है कि इस लेख के अंत में फुट नोट में लिखा है कि यह व्याख्यान इन्दौर में भोर पत्रिका को जारी करते समय दिया गया। यहाँ हम उसी व्याख्यान के कुछ चुनिन्दा टुकड़े दे रहे हैं। देखेंगे कि जैसे यह बिल्कुल आज की बात है। )



हिंदुत्व, भाजपा, कांग्रेस और फासिज्म

ज्ञानरंजन

किसी भी रूप में इतिहास के क्षणों में विफल हो जाना एक लम्बी दिक्कत पैदा कर सकता है, जो आज हमारे देश में पैदा हो गई है। गलती हम सब कर रहे हैं। भाजपा अगर यह सोचती है कि हिंदुत्व जागृत होगा तो यह नासमझी है। शांत, कोमल धर्मात्मा और सात्विक हिंदू पहले से ही अलग है। हिंदू किसान और गरीब श्रमिक पहले ही इस पचडे से अलग है। एक विशाल हिंदू समुदाय है जो हिंदू-अत्याचार का शिकार है। और अब तो हिंदू के और भी विभाजित होने के दिन आ गए हैं। पत्रकार गिरिलाल जैन अपने लेख अपनी जड़ से उध्वस्त राष्ट्रीयता में सही लिखा है कि आज देश में जितने भी विघटन हैं वे सब हिंदू विघटन हैं। पिछड़ी और उन्नत जातियां, दलित और सवर्ण तथा निम्न और उच्च वर्ग- ये सब हिंदू विघटन हैं और आज भारतीय जनता पार्टी और उसके कुसंगियों ने हिन्दुओं के सर्वनाश की पूरी व्यस्था कर ली है। अब एक विशाल कट्टर,अपराधी हिंदू वर्ग का विकास हो रहा है। इसी की लहर में, इसी की रक्त-रंजित चाल-ढाल में पूरा देश तहस-नहस हो रहा है।

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हमें एक मिथक से उबरना होगा की हिंदू तो बेचारा है, विनम्र है और मूलतः अहिंसक है। भारत के अहिंसक समाज में सर्वाधिक हिंसा है। सारे धर्मान्तरण हिंदू धर्म की असहिष्णुता और शोषण के कारण हैं। बौद्ध और जैन समाजों के प्रति हिन्दुओं का आक्रामक रुख रहा है। हजारों जैन मूर्तियों और कलाकृतियों को तोड़ने और ग्रंथों को भस्मीभूत करने की शर्म हिंदू समाज के माथे पर इतिहास में लिखी हुई है। श्रीकाकुलम में काले-कलूटे आदिवासिओं को उजाड़ देने और उनकी जनचेतना को कुचलने का काम हिंदू सत्ता ने किया। तुर्कमान गेट के इलाके में आपातकाल के दौर में जो हुआ वह मदांध हिंदू सत्ता का कारनामा था। संजय गाँधी इसी वास्ते आर एस एस का प्रियतम व्यक्ति था। इंदिरा गाँधी भी पीर-पैगम्बरों,मंदिरों और तंत्र-मंत्र के साथ शंकराचार्यों से संपर्क बनाये रखती थीं। नेहरू के बाद किसी न किसी रूप में हिन्दूपन कांग्रस का एक प्रमुख लक्षण था। और मुसलमानों का तुष्टिकरण एक रणनीति मात्र थी। भाजपा एक दबी-छुपी हिंदू कांग्रेस का विस्फोट है, विकास है। दिल्ली में ८४ के दंगों में ४००० सिखों को बर्बरतम तरीकों से जिन्दा मारा गया। इतिहास पर आज जितनी धूल फेन फेंकी जाए, ये न्रिशंशताएँ अमिट रहेंगी। विभूति नारायण राय ने अपने सम्पादकीय में ठीक ही लिखा है कि हिंदू ही एकमात्र ऐसा समुदाय है, जिसमें बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में स्त्रियाँ जला दी जाती हैं। किसी दुसरे समुदाय में यह बर्बरता नहीं है। हमें इस सत्य को भी सर्वसाधारण तक पहुँचा देना चाहिए कि देश का एक भी दंगा ऐसा नहीं है जिसमें मरने वाले हिन्दुओं की तादाद ज्यादा रही हो। हिटलर भी चुना हुआ व्यक्ति था। फासिज्म, एक हद के बाद इतना चमकदार हो जाता है कि लुभाने लगता है।

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इस समय हिंदू की लडाई हिंदू से है। आप अपने को एक आदर्श हिंदू के रूप में बचाने में सफल हों , यही सबसे जरुरी है। विवेकानंद ने कहा था , ''अगर कोई यहाँ पर आशा करता है कि एकता, किसी एक धर्म की विजय तथा दूसरे के विनाश से स्थापित होगी तो यह आशा एक मृग मरीचिका के सिवाय कुछ नहीं। ''

चर्च ने यूरोप में साम्यवाद की विफलता के लिए अपूर्व भूमिका अदा की। इरान, मिस्र और अफगानिस्तान में इस्लामिक कट्टरता ने विध्वंशक कार्य किया। भारत में चर्च, इस्लाम और हिंदुत्व मिलकर जनतंत्र का मुखौटा चला रहे हैं। इसलिए यहाँ विनाश और ज्यादा गंभीर होगा।

-ज्ञानरंजन

10 comments:

विजय गौड़ said...

लम्बे समय बाद दिखायी दिये हैं, हां इससे पूर्व उपन्यास अंश के साथ थे। उम्मीद है अब दिखते रहेंगे। ग्यान जी यह आलेख सच में मह्त्वपूर्ण है। आभार इसकॊ पढवाने के लिए।

जितेन्द़ भगत said...

ज्ञानरंजन जी के इस लेख को पढ़वाने के लि‍ए शुक्रि‍या।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

''अगर कोई यहाँ पर आशा करता है कि एकता, किसी एक धर्म की विजय तथा दूसरे के विनाश से स्थापित होगी तो यह आशा एक मृग मरीचिका के सिवाय कुछ नहीं। ''

बिल्कुल सही...सहमत.

अरुण भाई,
ज्ञानरंजन जी के तो हम नियमित
पाठक हैं और उनकी लेखनी के मुरीद भी.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन

ज्ञान said...

'हिंदू ही एकमात्र ऐसा समुदाय है, जिसमें बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में स्त्रियाँ जला दी जाती हैं।'

कितना कड़वा सच है

Udan Tashtari said...

आभार ज्ञान जी को पढ़वाने का. पिछली बार फोन पर चर्चा हुई थी ज्ञान जी से.

प्रदीप मिश्र said...

अरूण तुमने पुरानी याद ताजा कर दी। भोर हम दोनों का सपना था, और है। ज्ञान जी को पढ़ना और सुनना, अपने समय को समझने का तमीज देता है। बधाई।

ravindra vyas said...

प्रिय अरूण, आपने इस वक्त एक जरूरी पोस्ट लगाई है। और यह वक्ती होने के बावजूद वक्ती नहीं है। यह अपने समय में गहरे धंसकर उसके के पार देखती है।

Ek ziddi dhun said...

Sahi hi kaha hai ki Hindu itihas kaisa hinsak hai..aur vartmaan dekhiye..
phir bhi log besharm tark karne lagte hain..

varsha said...

विवेकानंद ने कहा था , ''अगर कोई यहाँ पर आशा करता है कि एकता, किसी एक धर्म की विजय तथा दूसरे के विनाश से स्थापित होगी तो यह आशा एक मृग मरीचिका के सिवाय कुछ नहीं। ''
लेकिन इंसानियत हमेशा हारेगी और शर्मसार भी होगी.शुक्रिया .

Arun Aditya said...

Vijay Gaur ji , Jitendra Bhagat ji, Dr jain saheb, Gyan ji, Sameer lal ji, Pradeep, Ravindra, Dheeresh ur Varsha ji aap sab ko bahut-bahut DHANYAVAAD.