लोटे
देवताओं को जल चढ़ाने के काम आते रहे कुछ
कुछ ने वजू कराने में ढूंढ़ी अपनी सार्थकता
प्यासे होंठों का स्पर्श पाकर ही खुश रहे कुछ
कुछ को मनुष्यों ने नहाने या नित्यकर्म का पात्र बना लिया
बहुत समय तक अपनी अपनी भूमिका में सुपात्र बने रहे सब
पर आजकल बदल गई हैं इनकी भूमिकाएं
जल चढ़ाने और वजू कराने वाले लोटे
अब अकसर लड़ते झगड़ते हैं
और बाद में शांति अपीलें जारी करते हैं
काफी सुखी हैं ये लोटे
पर सबसे ज्यादा सुखी हैं वे, जो बिना पेंदी के हैं
परेशान और दुखी हैं वे, जो किसी की प्यास बुझाना चाहते हैं
परेशान और दुखी हैं वे, जो किसी की प्यास बुझाना चाहते हैं
आजकल पात्रों की सूची से गायब होता जा रहा है उनका नाम
जग -मग के इस दौर में लोटों का क्या काम?
राष्ट्रीय लुढ़कन के इस दौर में
जब गेंद की तरह इस पाले से उस पाले में
लुढ़क रही हैं अंतरात्माएं
कितना आसान है वोटों का लोटों में तब्दील हो जाना
ये जो आसानी है
कितनी बड़ी परेशानी है ।
- अरुण आदित्य
(मध्य प्रदेश साहित्य परिषद की पत्रिका साक्षात्कार में प्रकाशित। हिमाचल के युवा कवि प्रकाश बादल इस कविता को यहां देने के लिए बार-बार आग्रह करते रहे हैं। )
29 comments:
बढ़िया धारदार कविता. बहुत सटीक!
बहुत सटीक -बेहतरीन रचना.
बहुत सुन्दर और गम्भीर बात कही आपने रचना में, आज हर तरफ़ मुरादाबादी लुड़कने वाले लौटे ही व्याप्त हैं और रो रहे है वो जो सचमुच किसी की मदद करना चाहते है, किन्तु इस लुड़कन का शिकार बन बैठते है...शुक्रिया और बधाई बेबाक लेखन के लिये,साथ ही युवा कवि श्री प्रकाश बादल को भी धन्यवाद, लिखना तब ही सार्थक होता है जब वह जन-जन तक पहुँचे...
बहुत दिनों के इंतजार के बाद आपकी कविता पढ़ने का मौका मिला । सुंदर
भाई श्री अरुण आदित्य जी, मैं तो आपकी रचनाओं का कायल हूं ही लेकिन मैं दुर्भाग्य से आपकी बहुत ज्यादा रचनाएं नहीं पढ़ सुन सका। हिमाचल प्रदेश में जब कभी आप किसी कवि-गोष्ठी में आते थे तो ही आपकी रचनाएं सुनता रहा। आपकी जितनी भी रचनाएं सुनी पढ़ी, मेरे भीतर तक जा पहुंची। मैने यूं तो बड़े -बड़े कवियों को सुना-पढ़ा है लेकिन आपका कायल इसलिये हूं कि आप कविता को कठिन जुमलों से दूर रखते हैं और आम आदमी की भाषा में बात कहते हैं। आपकी यही बानगी आपकी कविताओं को तथाकथित बड़े कवियों से कहीं आगे रखती है। मैं तो आपकी हर रचना सुनना पढ़ना चाहूंगा, बल्कि जब आपकी कविताएं सुनी जाएगी तो हर श्रोता मेरी ही तरह ललायित रहेगा। आपकी रचनाओं से उन लिखने वालों को ये सीखना चाहिए कि जुमलों की जुगलबंदी नहीं बल्कि आमाआदमी की भाषा में कही गई कविता ही लोकप्रिय हो सकती है। आशा करूंगा कि आप मेरे जैसे आपके प्रशंसकों को अपनी कविताएं पढाते रहेंगे। आपका कविता संग्रह अगर आपके पास मुझे देने के लिये हो तो मुझे वी.पी.पी से भिजवाए मैं उसकी निश्चित कीमत देकर पढ़ना चाहूंगा। मेरी फरमाईश पर एक बेहतर कविता पढ़ाने के लिए आपका आभारी हूं।
बहुत अच्छी कविता।
अच्छी कविता है।
bahut badhiya
अ आ जी, कविता पढ़ते पढ़ते ही वो शाम फिल्म की तरह मेरी आंखों के सामने चलने लगी, जब आपने यह कविता सुनाई थी. लाजवाब.
पंडित जी प्यासे क्यूं और गदहा उदास काहे ?
क्यूंकि लोटा ना था ......
bhai arun jee, Isse pehle bhi 1 comment dala tha kahin kho gya shayad. blog me aapka chehra dekh kar achcha laga. kavitayen to aap ke mukh se sun hi chuka hun. manglesh bhai ki kavita aur kitab ke sheershak se aapka ek purana lekh yyad aaya PAHAR PAR LATAIN. Very Good.
खतरनाक!
अच्छी है।
आपको और प्रकाश बादल को ...अलग मूड की इस कविता सुनवाने के लिए ,शब्दों से नही भावनाओं की बधाई
आजकल ऐसे ही लौटे हमारे राजस्थान में भी खूब लुढ़क रहे हैं . वसुंधराजी रही तो उधर लुढ़कते रहे अब गहलोतजी आए तो इस तरफ़ उतार बनवा लिया . लाजवाब अभिव्यक्ति .
श्रेष्ठ कबाड़ी अशोक पाण्डेय जी, समीर लाल जी, सुनीता जी, संगीता जी, ब्रजेश, प्रकाश बादल, विजय गौड़, महक, कुमार आलोक, नवनीत शर्मा, महेन, रवीन्द्र व्यास, विधु जी, वर्षा और अनूप सेठी जी आप सब का हार्दिक आभार।
अनूप जी मुझे भी हिमाचल की वह शाम याद आ गई जब हमने एक साथ कविता पाठ किया था।
नवनीत जी आपकी पहली टिपण्णी गुमी नहीं , वह मेरी पहली पोस्ट अ आ यानी... पर प्रकाशित है।
arun bhaai,
kripayaa "shabd" kavita bhee yahaan prastut karen. aapakaa aabhaari rahoonga.
अरुण भाई,
लोटे के बहाने
अंतरात्मा की लुडकन को
रास्ता बताने वाली बहुत
तीखी रचना है यह.
आपमें
समझौता परस्त समय को जाँचने
और ढुलमुल धर्म वाले खाली बैठे
लोगों को परखने की खासी ज़िद
साफ तौर पर दिखती है....
कविता को जीवन इसी तरह मिला करता है.
=================================
शुभ कामनाएँ
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
bahut badhiya hai.badhai.
mere blog par bhi swagat hai.
शब्द आओ मेरे पास..............
क्यों तरसाते हो अरुण भाई।
बहुत वाजिब कविता है।
बेहद खूब, लोटो के बहाने हिंदुस्तान की तस्वीर का खाका खींच दिया। बचपन में हम बहने एक दूसरे को मुरादाबादी लोट ( बेपेंदी का लोटा ) कह कर चिढ़ाते थे...किसी ने भी माँ-पापा से चुगली की तो तुरंत इस उपमा से नवाजा गया। आपकी कविता ने वास्तविकता के साथ-साथ बचपन भी याद दिला दिया।
Arun ji,
you are writing compleat poetry. cogratulation.
आज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला। वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। कभी आप हमारे ब्लॉग पर भी आयें !!
अरुण भाई को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
arun bhai nav varsh ki shubh kamanayen.
mere blog par padharen
bahadurpatel.blogspot.com
डाक्टर जैन साहब, धीरेश सैनी, बहादुर पटेल, श्रुति अग्रवाल, राकेश शर्मा और डाकिया बाबू आप सब का भी बहुत बहुत शुक्रिया।
badhiya kavita. pallav
अरुण सर, कई बार आपके ब्लाग पर आया लेकिन इस कविता पर नजर पहली बार गई। वाकई बहुत ही अच्छी। बधाइयां
नीरज (दैनिक जागरण)
Post a Comment