अन्योन्याश्रित
हवा चूमती है फूल को
और फिर नहीं रह जाती है वही हवा
कि उसके हर झोंके पर
फूल ने लगा दी है अपनी मुहर
और फूल भी कहां रह गया है वही फूल
कि उसकी एक-एक पंखुड़ी पर
हवा ने लिख दी है सिहरन
फूल के होने से महक उठी है हवा
हवा के होने से दूर-दूर तक फैल रही है फूल की खुशबू
इस तरह एक के स्पर्श ने
किस तरह सार्थक कर दिया है दूसरे का होना।
- अरुण आदित्य
(प्रगतिशील वसुधा के अंक 73 में प्रकाशित। स्वर्गीय हरिशंकर परसाई द्वारा संस्थापित इस पत्रिका के प्रधान संपादक कमला प्रसाद और संपादक स्वयं प्रकाश व राजेंद्र शर्मा हैं। पता है- कमला प्रसाद, एम-31, निराला नगर, दुष्यंत मार्ग, भदभदा रोड, भोपाल
और हां इस कविता के साथ फूल का सुंदर-सा जो चित्र लगा है, उसके छायाकार इंदौर के युवा कवि प्रदीप कांत हैं। प्रदीप केट में वैज्ञानिक अधिकारी हैं। शायरी का शौक पुराना था, छायाकारी का चस्का अभी नया-नया लगा है। प्रदीप ने पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर कल जब यह फोटो भेजा तो मुझे अपनी यह पुरानी प्रेम-कविता याद आ गई। फिर सोचा कि आप सब को पढ़वा दिया जाए।
30 comments:
आपकी कवितायें मुझे पसंद हैं. पहले भी पढ चुका हूं. न हवा हवा रह जाती है न फ़ूल, फ़ूल. प्रेम का यह अदभुत स्पर्श है.
अन्तिम पंक्ति में सारा सार है... इस तरह एक के स्पर्श ने किस तरह सार्थक कर दिया है दूसरे का होना।
हवा के होने से दूर-दूर तक फैल रही है फूल की खुशबू
--क्या महत्वपूर्ण है..आप की कलम के हम चहेते हैं..कहाँ छपी वो बस वेल्यू एडीशन है उनके लिए..आपके लिए नहीं.
बहुत उम्दा लिखते हैं आप, मित्र. लिखते रहिये. शुभकामनायें.
अरुण जी,
हवा के झोंके और फूल की खुशबू की तरह
ज़िंदगी की ज़ुम्बिश दे गई आपकी कविता.
================================
आपकी प्रेम कविता और आपका कविता-प्रेम
दोनों लाज़वाब हैं ....! चित्र मनमोहक है.
शुभकामनाएँ
डा.चंद्रकुमार जैन
दर्शनीय चित्र, पठनीय कविता
सुन्दर , सहज !
bahut hi sundar,sprash ki mahima,badhai
बहुत कोमल, सुंदर।
आपके अड्डे पर वापस आए तो एकदम ताज़ादम हो गए। बहुत ख़ूब।
सुंदर!
अति सुंदर!
भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति.
आभार.
हमेशा की तरह इस बार भी गमक रही हैं-खुशबू। कविता के साथ प्रदीप के चित्र ने, सहज को और भी सुन्दर बना दिया है। अच्छी कविता पढ़वाने और सुन्दर फूल दिखाने के लिए धन्यवाद।
अरूण और प्रदीप दोनों की रोशनी में खुशबू और फूल का स्वागत है। बधाई।
अति सुंदर !
घुघूती बासूती
और फूल भी कहां रह गया है वही फूल
कि उसकी एक-एक पंखुड़ी पर
हवा ने लिख दी है सिहरन
चित्र के बेहतरीन र्मम को अपनी बेहतरीन प्रेम कविता के माध्यम से सबके सामने लाने का धन्यवाद। साथ ही चित्र पर आप सभी मित्रों की हौसला आफज़ाई के लिये भी धन्यवाद।
- प्रदीप कान्त
मित्रो, सारे सुंदर-सुंदर शब्द तो आप लोगों की टिप्पणियों में आ गए, अब मैं आभार व्यक्त करने के लिए शब्द कहाँ से लाऊं?
....और अरुण जी,
आपके कुछ नहीं कहने से
बेहतर कथन अब हम कहाँ से लायेंगे ?
================================
मौन भावना भी भाषा है.
आपने एक बार फिर हवा के झोंके के साथ
खुशबू फूलों की बाँट दी...चुपचाप...!
आपका
चंद्रकुमार
अरूण जी, एक अन्य सुन्दर रचना के लिये साधुवाद।
प्रदीपकांत इंदौरी तो बडे छुपे रूस्तम निकले - कभी वैज्ञानिक, कभी शायर, तो कभी छायाकार, वाह क्या बात है।
bahut ghatiya kvita hai. bhram me n rhen arunjee
डॉक्टर जैन साहब, परेश और शशि जी, आप सब को फ़िर -फ़िर से शुक्रिया। शशि जी आपका विशेष रूप से आभारी हूँ, आईना दिखाने के लिए। भ्रम में बिल्कुल नहीं हूँ, अभी सीख रहा हूँ, शायद कभी अच्छी कविता भी लिख सकूँगा।
अरूण भाई
राम राम.
कितनी सुन्दर अभिव्यक्ति है यह मन की.
बस यूँही शब्दों का कारवाँ जारी रखियेगा.
संजय भाई बहुत-बहुत शुक्रिया।
आहा क्या बात है....देर से आया पर कविता का सुख पाया....
भाई रोज ही होता था यह सब की एक प्रति मुझे दे दो....या बताओ कि कैसे पाऊँ...यह काम जरूर कर दो....
sooooooo...beautiful....
yaad...!!!
बोधिसत्व जी, नीलिमा जी बहुत-बहुत आभार। अभिषेक भाई, आपसे यहाँ मिलकर अद्भुत आनंद मिला।
पता नहीं सार्थकता के लिये हमेशा दो की ही ज़रूरत क्यों होती है। आपने काफ़ी सहजता से ऐसी बात काफ़ी अच्छे तरीके से कह दी। शुक्रिया ऐसी सुंदर कविता पढ़ाने के लिये।
शुभम।
आदरणीय अरुण भाई,
सादर प्रणाम। बडे दिनों बाद आपके बारे मेंखबर मिली, और वो खबर भी इतनी सुखद थी की में कह नही सकता। आपकी कविता और लेखनी से अब लगातार सम्पर्क में रहूँगा ये मेरे लिये और भी सुखद है। हो सके तो अपनी "लोटे" और "शब्द" कविता भी ब्लॉग में डालें.कुछ लोगों ने आपकी कविता को घटिया कहकर अपनी मंद बुद्धि का जो सबल प्रमाण दिया हैं वह काबिल तारीफ है
आपका अनुज प्रकाश बादल।
प्रकाश भाई शुक्रिया। आपकी फरमाइश सर आंखों पर। लोटे भी जल्द ही पढ़वाऊंगा।
आदरणीय अरुण भाई,
"लोटे" और "शब्द" की प्रतीक्षा है।
Post a Comment