Wednesday, June 4, 2008

हवा चूमती है फूल को



अन्योन्याश्रित


हवा चूमती है फूल को

और फिर नहीं रह जाती है वही हवा

कि उसके हर झोंके पर

फूल ने लगा दी है अपनी मुहर


और फूल भी कहां रह गया है वही फूल

कि उसकी एक-एक पंखुड़ी पर

हवा ने लिख दी है सिहरन


फूल के होने से महक उठी है हवा

हवा के होने से दूर-दूर तक फैल रही है फूल की खुशबू


इस तरह एक के स्पर्श ने

किस तरह सार्थक कर दिया है दूसरे का होना।


- अरुण आदित्य

(प्रगतिशील वसुधा के अंक 73 में प्रकाशित। स्वर्गीय हरिशंकर परसाई द्वारा संस्थापित इस पत्रिका के प्रधान संपादक कमला प्रसाद और संपादक स्वयं प्रकाश व राजेंद्र शर्मा हैं। पता है- कमला प्रसाद, एम-31, निराला नगर, दुष्यंत मार्ग, भदभदा रोड, भोपाल

और हां इस कविता के साथ फूल का सुंदर-सा जो चित्र लगा है, उसके छायाकार इंदौर के युवा कवि प्रदीप कांत हैं। प्रदीप केट में वैज्ञानिक अधिकारी हैं। शायरी का शौक पुराना था, छायाकारी का चस्का अभी नया-नया लगा है। प्रदीप ने पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर कल जब यह फोटो भेजा तो मुझे अपनी यह पुरानी प्रेम-कविता याद आ गई। फिर सोचा कि आप सब को पढ़वा दिया जाए।


30 comments:

विजय गौड़ said...

आपकी कवितायें मुझे पसंद हैं. पहले भी पढ चुका हूं. न हवा हवा रह जाती है न फ़ूल, फ़ूल. प्रेम का यह अदभुत स्पर्श है.

Rajesh Roshan said...

अन्तिम पंक्ति में सारा सार है... इस तरह एक के स्पर्श ने किस तरह सार्थक कर दिया है दूसरे का होना।

Udan Tashtari said...

हवा के होने से दूर-दूर तक फैल रही है फूल की खुशबू


--क्या महत्वपूर्ण है..आप की कलम के हम चहेते हैं..कहाँ छपी वो बस वेल्यू एडीशन है उनके लिए..आपके लिए नहीं.

बहुत उम्दा लिखते हैं आप, मित्र. लिखते रहिये. शुभकामनायें.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

अरुण जी,
हवा के झोंके और फूल की खुशबू की तरह
ज़िंदगी की ज़ुम्बिश दे गई आपकी कविता.
================================
आपकी प्रेम कविता और आपका कविता-प्रेम
दोनों लाज़वाब हैं ....! चित्र मनमोहक है.
शुभकामनाएँ
डा.चंद्रकुमार जैन

Pramendra Pratap Singh said...

दर्शनीय चित्र, पठनीय कविता

Pratyaksha said...

सुन्दर , सहज !

mehek said...

bahut hi sundar,sprash ki mahima,badhai

शायदा said...

बहुत कोमल, सुंदर।

Ashish said...

आपके अड्डे पर वापस आए तो एकदम ताज़ादम हो गए। बहुत ख़ूब।

बालकिशन said...

सुंदर!
अति सुंदर!
भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति.
आभार.

Astrologer at your service said...

हमेशा की तरह इस बार भी गमक रही हैं-खुशबू। कविता के साथ प्रदीप के चित्र ने, सहज को और भी सुन्दर बना दिया है। अच्छी कविता पढ़वाने और सुन्दर फूल दिखाने के लिए धन्यवाद।

प्रदीप मिश्र said...

अरूण और प्रदीप दोनों की रोशनी में खुशबू और फूल का स्वागत है। बधाई।

ghughutibasuti said...

अति सुंदर !
घुघूती बासूती

प्रदीप कांत said...

और फूल भी कहां रह गया है वही फूल
कि उसकी एक-एक पंखुड़ी पर
हवा ने लिख दी है सिहरन


चित्र के बेहतरीन र्मम को अपनी बेहतरीन प्रेम कविता के माध्यम से सबके सामने लाने का धन्यवाद। साथ ही चित्र पर आप सभी मित्रों की हौसला आफज़ाई के लिये भी धन्यवाद।

- प्रदीप कान्त

Arun Aditya said...

मित्रो, सारे सुंदर-सुंदर शब्द तो आप लोगों की टिप्पणियों में आ गए, अब मैं आभार व्यक्त करने के लिए शब्द कहाँ से लाऊं?

Dr. Chandra Kumar Jain said...

....और अरुण जी,
आपके कुछ नहीं कहने से
बेहतर कथन अब हम कहाँ से लायेंगे ?
================================
मौन भावना भी भाषा है.
आपने एक बार फिर हवा के झोंके के साथ
खुशबू फूलों की बाँट दी...चुपचाप...!
आपका
चंद्रकुमार

परेश टोकेकर 'कबीरा' said...

अरूण जी, एक अन्य सुन्दर रचना के लिये साधुवाद।
प्रदीपकांत इंदौरी तो बडे छुपे रूस्तम निकले - कभी वैज्ञानिक, कभी शायर, तो कभी छायाकार, वाह क्या बात है।

shashi said...

bahut ghatiya kvita hai. bhram me n rhen arunjee

Arun Aditya said...

डॉक्टर जैन साहब, परेश और शशि जी, आप सब को फ़िर -फ़िर से शुक्रिया। शशि जी आपका विशेष रूप से आभारी हूँ, आईना दिखाने के लिए। भ्रम में बिल्कुल नहीं हूँ, अभी सीख रहा हूँ, शायद कभी अच्छी कविता भी लिख सकूँगा।

sanjay patel said...

अरूण भाई
राम राम.
कितनी सुन्दर अभिव्यक्ति है यह मन की.
बस यूँही शब्दों का कारवाँ जारी रखियेगा.

Arun Aditya said...

संजय भाई बहुत-बहुत शुक्रिया।

बोधिसत्व said...

आहा क्या बात है....देर से आया पर कविता का सुख पाया....
भाई रोज ही होता था यह सब की एक प्रति मुझे दे दो....या बताओ कि कैसे पाऊँ...यह काम जरूर कर दो....

neelima garg said...

sooooooo...beautiful....

cartoonist ABHISHEK said...

yaad...!!!

Arun Aditya said...

बोधिसत्व जी, नीलिमा जी बहुत-बहुत आभार। अभिषेक भाई, आपसे यहाँ मिलकर अद्भुत आनंद मिला।

महेन said...

पता नहीं सार्थकता के लिये हमेशा दो की ही ज़रूरत क्यों होती है। आपने काफ़ी सहजता से ऐसी बात काफ़ी अच्छे तरीके से कह दी। शुक्रिया ऐसी सुंदर कविता पढ़ाने के लिये।
शुभम।

Prakash Badal said...
This comment has been removed by the author.
Prakash Badal said...

आदरणीय अरुण भाई,
सादर प्रणाम। बडे दिनों बाद आपके बारे मेंखबर मिली, और वो खबर भी इतनी सुखद थी की में कह नही सकता। आपकी कविता और लेखनी से अब लगातार सम्पर्क में रहूँगा ये मेरे लिये और भी सुखद है। हो सके तो अपनी "लोटे" और "शब्द" कविता भी ब्लॉग में डालें.कुछ लोगों ने आपकी कविता को घटिया कहकर अपनी मंद बुद्धि का जो सबल प्रमाण दिया हैं वह काबिल तारीफ है

आपका अनुज प्रकाश बादल।

Arun Aditya said...

प्रकाश भाई शुक्रिया। आपकी फरमाइश सर आंखों पर। लोटे भी जल्द ही पढ़वाऊंगा।

Prakash Badal said...

आदरणीय अरुण भाई,

"लोटे" और "शब्द" की प्रतीक्षा है।