प्रदीप कान्त इंदौर की हमारी प्रिय चंट-चौकड़ी (रजनीरमण शर्मा, प्रदीप मिश्र, देवेन्द्र रिणवा और प्रदीप कान्त ) की एक खास कड़ी हैं। फिजिक्स और मैथ्स में पोस्ट ग्रेजुएट प्रदीप यूं तो राजा रामन्ना सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलोजी इंदौर में वैज्ञानिक अधिकारी हैं, लेकिन दिल से शायर हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। यहाँ प्रस्तुत दोनों गजलों में आप समय की धड़कन को सुन सकते हैं
कुछ मेरा भी खो रहा है राम जी
क्या अज़ब ये हो रहा है राम जी
मोम अग्नि बो रहा है राम जी
पेट पर लिखी हुई तहरीर को
आंसुओं से धो रहा है राम जी
आप का कुछ खो गया जिस राह में
कुछ मेरा भी खो रहा है राम जी
आंगने में चाँद को देकर शरण
ये गगन क्यों रो रहा है रामजी
सुलगती रहीं करवटें रात भर
और रिश्ता सो रहा है राम जी
उनका और हमारा पानी
उठता गिरता पारा पानी
पलकों पलकों खारा पानी
चट्टानें आईं पथ में जब
बनते देखा आरा पानी
नानी की ऐनक के पीछे
उफन रहा था गारा पानी
पानी तो पानी है फ़िर भी
उनका और हमारा पानी
देख जगत को रोया फ़िर से
यह बेबस बेचारा पानी
-प्रदीप कान्त
11 comments:
पहली प्रस्तुति के सवाल
बहुत पानीदर लगे
और दूसरी ग़ज़ल में
पानी की सवालिया फ़ितरत
आदमी की कारगुज़ारियों के चलते
अपनी बेचारगी के विध्वंसक नतीजों
से जैसे आगाह कर रही है.
प्रदीप जी को बधाई.
अरुण जी, अनुरोध है कि
पानी वाली ग़ज़ल के मतले में
खरा शब्द को खारा कर दीजिए.
धन्यवाद और नये व नायाब चयन
के लिए साधुवाद.
डा.चंद्रकुमार जैन
संशोधन के लिए आभार.
डॉक्टर जैन साहेब, प्रूफ की त्रुटी पर ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया।
बढ़िया लिखा है । पढ़वाने के लिए धन्यवाद ।
घुघूती बासूती
These Gazals are really very fantastic
very good Ghazals.
अरूणजी,
कल संडे आनंद में गोपीचंद नारंग के साथ आपकी बातचीत पढ़ी। यह अच्छा हुआ कि साहित्य अकादमी वाले मसले पर नारंग साहब का पक्ष भी आ गया। यह जरूरी था। पकंज बिष्ट शायद यह समझते हैं कि जो वो कह रहे हैं वही सच है बाकी सब झूठ। वो खुद कितने पाक-दामन हैं दुनिया जानती है।
बहरहाल इंटरव्यू की अच्छी परंपरा शुरू की है आपने अमर उजाला में। साहित्य के पेज का दायरा ज़रा और बढ़ाएं।
अंशुमाली जी, साइट पर आने के लिए शुक्रिया, lekin इस जगह पर पंकज बिष्ट से पाक-दामन होने का सबूत मांगना उचित नहीं जान पड़ता, क्योंकि पंकज जी यहाँ आकर सफाई नहीं दे सकते। वैसे भी नारंग के इंटरव्यू में पंकज बिष्ट का कोई सन्दर्भ नहीं था। और न ही नारंग का पक्ष रखने के लिए वह इंटरव्यू किया था। कुछ सामायिक सवाल थे जो मुझे लगा कि पूछे जाने चाहिए, और मैंने उन्हें पूछा। हर इंटरव्यू में मैं यही करने की कोशिश करता हूँ।
इंटरव्यू के बजाय अगर आप प्रदीप कान्त की इन गजलों पर कोई प्रतिक्रिया देते तो मुझे और अच्छा लगता।
अच्छी रचनाएँ जारी की हैं अरूण भाई आपने.प्रदीपजी को हार्दिक बधाई.
अर्सा हुआ आपसे राम राम ...दुआ सलाम नहीं हुई.जितने बाक़ी रहे वो सभी अभिवादन आप तक पहुँचे.
संजय पटेल
098268-26881
संजय जी आपकी टिपण्णी देखकर अच्छा लगा । आपकी टिपण्णी से इंदौर की यादें हरी हो गईं।
REALLY VERY LONG BACK I READ VERY NICE GAZALS OF YOURS PRADEEP(MODU). AISE HI LIKHTE RAHO
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