यह केसरिया करो थोड़ा और गहरा
और यह हरा बिल्कुल हल्का
यह लाल रंग हटाओ यहाँ से
इसकी जगह कर दो काला
हमें तस्वीर के बड़े हिस्से में चाहिए काला
यह देवता जैसा क्या बना दिया जनाब
इसके बजाय बनाओ कोई सुंदर भूदृश्य
कोई पहाड़, कोई नदी
अब नदी को स्त्री जैसी क्यों बना रहे हो तुम
अरे, यह तो गंगा मैया हैं
इन्हें ठीक से कपड़े क्यों नहीं पहनाये
कर्पूर धवल करो इनकी साड़ी का रंग
कहाँ से आ रही है ये आवाज
इधर-उधर देखता है चित्रकार
कहीं कोई तो नहीं है
कहीं मेरा मन ही तो नहीं दे रहा ये निर्देश
पर मन के पीछे जो डर है
और डर के पीछे जो कैडर है
जो सीधे-सीधे नहीं दे रहा है मुझे धमकी या हिदायत
उसके खिलाफ कैसे करूं शिक़ायत?
इस कविता के सहित मेरी पांच कवितायें हरिगंधा पत्रिका में छपी हैं। हरियाणा साहित्य अकादमी की यह पत्रिका काफी समय से निकल रही थी, लेकिन कोई नोटिस ही नहीं लेता था। देश निर्मोही जब से इसके संपादक बने हैं यह वाकई समकालीन साहित्य की पत्रिका लगाने लगी है। हरिगंधा का पता है -
हरियाणा साहित्य अकादमी
169 , sector 12, panchkula-134112
8 comments:
सटीक, गंभीर और चिंत्य रचना। बहुत ही अच्छी।
बहुत अच्छी कविता । आज अभी आपका ब्लॉग देखा ।
कमती नज़र /खाकी / केसरिया / डर / शोर - एक साथ - सशक्त - rgds- मनीष
प्रभाकर जी, प्रत्यक्षा जी, मनीष जी, बहुत-बहुत धन्यवाद।
Arun jee, so good to see you in blogosphere!
Samarth
samarth, what are u doing in chennai?
Sirji, apna email ID deejiye, main aapko poori kahaani bhejta hoon.
:-)
I am working with HCL Technologies here. My email ID is vashishtha[at]gmail[dot]com.
apki kavitaye kafi samay se dekh raha hoin. blog par apki rachanadharmita achhi lagi.
mera blog http://khat-raag.blogspot.com/
pankaj misra
bareilly
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