आजकल क्या लिख रहे हो?
इस सवाल के जवाब में 'एक उपन्यास पर काम चल रहा है' कई वर्षों से मेरे लिए लिखने से बचने का एक खूबसूरत बहाना बना हुआ था। मित्रों ने घेराबंदी करके वह बहाना खत्म करवा दिया। लंबे समय से 'शीघ्र प्रकाश्य' बना रहा उपन्यास उत्तर वनवास अंतत: प्रकाशित हो गया है।
पुस्तक मेले में इसी शनिवार को उसका लोकार्पण है।
लोकार्पण करेंगे
हिंदी साहित्य के दो शिखर-व्यक्तित्व
नामवर सिंह और राजेंद्र यादव।
स्थान : आधार प्रकाशन का स्टाल
स्टाल नंबर- 81
हॉल नंबर- 12 ए
पुस्तक मेला प्रांगण, प्रगति मैदान, नई दिल्ली।
समय : 6 फरवरी, 2010, शाम 04 : 00 बजे
समय मिले तो जरूर आइएगा। और समय न मिले तो भी।
आपको कवि केदार नाथ सिंह की इन काव्य पंक्तियों का वास्ता :
आना
जब समय मिले
जब समय न मिले
तब भी आना।
11 comments:
koshish rahegi ki lokarpan ke awsar pr upasthit ho ssaku, bahut bahut badhai evm shubhkamnain.
Badhaai.
इस पोस्ट का शीर्षक ही ऐसा है कि कोई भी खिंचा चला आए.
वाह मजा आ गया, ४० फीसदी की छूट, सर यह तो एक तोहफे की तरह हुआ, जरूर आउंगा...
Subhkamnayein... lekhan ki nirantarta vichar ki nirantarta hoti hai...ise anvarat rakhein ...
Aapka Neelesh Jain www.yoursaarathi.blogspot.com
अरुण भाई मेरी शुभकामनाएँ स्वीकार करें और प्रकाशक का पता बताईयेगा। उपन्यास ज़रूर पढ़ना चाहूँगा। आपसे आपके कविता संग्रह की गुहार भी लगाई थी लेकिन आपने न संग्रह मुझे भिजवाया और न ही प्राप्ति स्थान के बारे में बताया, आशा है कि अबकी बार ऐसा नहीं होगा। और आपका उपन्यास पढ़ने को मिलेगा।
बधाई...
सर, अभी-अभी उत्तर वनवास पढ़कर ख़त्म किया, मुक्ति पथ के बाद यह दूसरा ऐसा उपन्यास है, जो इतना रोचक शैली में लिखा गया था की उसे तुरंत पढ़ डाला| जातिगत डिवाइड से लेकर राजनीती के हर गंदले कोण को उभारकर रख दिया है आपने, सच कहें तो उन दो दौरों को जिस दौरान इस देश की दो बड़ी पार्टियों ने अपने-अपने मुद्दे खेले| उत्तर की तलाश में अंत में रामचंद्र को एक विकल्प की तलाश में दिखाया गया है, लेकिन वैकल्पिक स्पेस में भी कई दरारें हैं, और अभी तो यह विचार कर पाना मुश्किल की कौन सा विकल्प अधिक प्रभावी है, उम्मीद है की इस सवाल का जवाब उत्तर रामचरित्र से आगे के उपन्यासों से मिल पायेगा| सही मायने में 'जनता का उपन्यास', ख़ासतौर से अगर भाषा और लेखन शैली की बात हो तो! बधाई!
ab to lokarpan ki photu laga deejiye
बधाई! उपन्यास के इंतजार में! प्रदीप भाई से एडवांस बुकिंग करवा चुके है।
बहुत बहुत बधाई!
अरुण भाई ।
याद है इस उपन्यास के कुछ
आरंभिक पृष्ठ हमने साथ पढ़े थे
मेरे घर पर ?
बधाई और शुभकामनाएं
*जवाहर
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