Wednesday, January 13, 2010
उत्तर वनवास के बारे में वरिष्ठ कथाकार संजीव की राय
उपन्यास उत्तर वनवास का आवरण तैयार हो गया है। वरिष्ठ चित्रकार-कथाकार प्रभु जोशी की पेंटिंग से सज्जित यह आवरण आपको कैसा लग रहा है, जरूर बताएं। उम्मीद है कि उपन्यास दिल्ली के पुस्तक मेले में आधार प्रकाशन के स्टाल पर उपलब्ध रहेगा। बहरहाल उपन्यास के आने से पहले आइए देखते हैं कि वरिष्ठ कथाकार और हंस के कार्यकारी संपादक संजीव की इस उपन्यास के बारे में क्या राय है?
उत्तर वनवास : एक अभिनव प्रयास
संजीव
हिंदी पट्टी के लोकजीवन में 'राम चरित मानस का प्रभाव बहुत गाढ़ा रहा है। वर्षों पहले प्रतापगढ़ में बाबा रामचंद्र दास ने किसान आंदोलन में इसकी चौपाइयों-दोहों का धनात्मक उपयोग किया था। अग्रणी बांग्ला कथाकार सतीनाथ भादुड़ी ने रामचरित मानस का अपने उपन्यास 'ढोंड़ाय चरित मानस' में पुन: उपयोग किया। इस बार का मानस तुलसी के मानस का एंटी मैटर था। एक राजनीतिक पार्टी के लिए 'राम चरित मानस' को सीढ़ी बनाकर सत्ता तक पहुंचना जितना आसान है, एक रचनाकार के लिए उसका सकारात्मक उपयोग उतना ही मुश्किल होता है।
इधर अक्सर ही कहा जाने लगा है कि हिंदी की युवा पीढ़ी के पास अपना कोई उपन्यास नहीं है या कि उसमें उपन्यास लेखन की क्षमता नहीं है। दूसरी तरफ भाषा की सामथ्र्य के दोहन का भी मुद्दा है। भाषा के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने को इच्छुक हर शब्द साधक का पहले की अपेक्षा अधिक सामथ्र्य संपन्न होना लाजमी हो गया है। इन सारी चुनौतियों का जवाब बन कर आया है युवा कथाकार अरुण आदित्य का उपन्यास उत्तर-वनवास।
कथानायक रामचंद्र की मुठभेड़ उन तत्वों से होती है जो राम का उपयोग अपने निहित स्वार्थों के लिए करना चाहते हैं। अंत:, वाह्य दोनों स्तरों पर यह द्वंद्वात्मकता परवान चढ़ती है, स्थूल रुप में भी और प्रतीक रूप में भी। वहां राम का चौदह वर्षों का वनवास है, यहां सत्रह वर्षों का, रामचंद्र का ही नहीं, उनकी चेतना का भी।
सामंती मानसिकता के क्रोड़ में रचे-रसे अवध के गांव, गांव के ठाकुरों और ब्राह्मणों में वर्चस्व का द्वंद्व, द्वंद्व में पिसते दलित और स्त्रियां, धर्म, अध्यात्म, राजनीति और कदाचार, वर्ण और वर्ग, गत और अनागत, परछाइयां और आहटें - सब को अपने ढंग से पिरोता, पछींटता, खंगालता अपने भाषिक वितान में फैलाता चलता है उपन्यास। पारदर्शिता के स्तर पर, मौजूदा व्यवस्था की कारक शक्तियों के चेहरों और चरित्रों को आसानी से पहचाना जा सकता है; भाषा के स्तर पर, विश्लेषण के स्तर पर, फंतासी और कल्पनाशीलता के स्तर पर अरुण का यह एक अभिनव प्रयोग है।
बानगी के तौर पर उपन्यास के कुछ अंश- 'दरअसल हम एक डरे हुए समय में जी रहे हैं। डरी हुई राजनीति, डरा हुआ धर्म और डरा हुआ समाज बहुत खतरनाक होते हैं। और इन सब से ज्यादा खतरनाक होती है डरी हुई पत्रकारिता। और ये हमारे देस का दुर्भाग्य है कि हमें इन डरी हुई चीजों के बीच ही रहना पड़ रहा है।'
'... रामचंद्र उसके पीछे इतनी तेजी से लपके कि नींद से बाहर निकल गए। नींद से बाहर आने के बाद भी सपने से बाहर आने में उन्हें काफी देर लगी।'
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पुनश्च:
कुछ मित्रों ने आधार प्रकाशन का पता जानना चाहा है। पता इस प्रकार है:
आधार प्रकाशन
एस सी एफ-267, सेक्टर-16
पंचकूला, हरियाणा।
ई-मेल - aadhar_prakashan@yahoo.com
आधार प्रकाशन के संचालक और साहित्यिक पत्रिका पल-प्रतिपल के संपादक देश निर्मोही का मोबाइल नंबर है- 09417267004
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14 comments:
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Ek mitra is par likhna chahta hai kisi patrika se sameeksharth chahiye.
भाई, पत्रकारिता डरी हुई उतनी नहीं दिखती जितनी 'बिकी हुई' दिखती है.
सुन्दर चित्र है,वैसे मानस ने मुझे कभी अपील नही किया. समय निकाल कर आप की कृति पढूँगा. शुभकामनाएं.
ऊपर पहली टिप्पणी युवा कथाकार उमाशंकर सिंह की है जो यूनिकोड में न होने के कारण पढऩे में नहीं आ रही है। प्रस्तुत है उसका यूनिकोड में रूपांतर :
आप को बधाई, अपने को इंतजार
वैसे तो रचनाओं के प्रिव्यू या फ्लैप में लिखी बड़बोली इबारतों पर पाठकों का भरोसा नहीं है। लेकिन चूंकि संजीव इस मामले में उस तरह पेशेवर नहीं हैं और अपने लिखे-बोले के प्रति वे सचेत रहे हैं इसलिए उनकी बातें भरोसा दिलाती हैं। आपके उपन्यास के संदर्भ में संजीव के विचारों के प्रमाण उनके दिए हुए उद्धरण ही नहीं हैं पाखी एवं ब्लॉग में आए उत्तर वनवास के अंश भी हैं। उम्मीद है अरसे बाद कोई नया और अच्छा उपन्यास पढऩे को मिलेगा। यहां एक बात की विशेष ताकीद जरूरी है। वैसे तो किसी रचना की सुंदर और शुद्ध छपाई एक दुर्लभ चीज बन गई है पर प्रकाशक से इसकी उम्मीद तो की ही जा सकती है। इस उम्मीद पर वे कितने खरे उतरते हैं ये तो विश्व पुस्तक मेला में ही पता चलेगा। जिस तरह किताब की दुकानें पुराने सिनेमा हॉलों की तरह उजड़ती गईं हैं (दिल्ली में किताबों और पत्र-पत्रिकाओं का श्रीराम सेंटर स्थित सबसे बड़ा सेंटर इतिहास बन ही गया है) वैसे में पुस्तक मेले किताबों की साल-दो साल की चाहत को पूरा करने का मंच बच गई हैं। इसलिए आपके लिए बधाई और अपने लिए अब एक साथ पुस्तक मेला और आपके उपन्यास
का संयुक्त इंतजार...
- उमाशंकर सिंह
Avran behad pyara hai aur upnyaas ke bare men Sanjeev bata hi rahe hain
बहुत सुन्दर आवरण तैयार हुआ है आदित्य भाई... और जोशी जी पेंटिंग के क्या कहने! उपन्यास के कुछ अंश ब्लॉग पर ही पढ़े थे मैंने. हांडी का एक चावल ही काफी होता है पका हुआ देखने के लिए. उम्मीद ही नहीं, विश्वास भी है कि यह उपन्यास अपनी छाप छोड़ेगा... और संजीव जी तो खैर हमारे दौर के बड़े कथाकारों में से हैं. उनकी राय को हम पुख्ता समझते हैं! बधाइयां स्वीकारें.
और हाँ फोन नंबर चाहिए आपका. कृपया जल्दी से भेजिए chaturvedi_3@hotmail.com पर.
बधाई। वैसे दुकड़े-टुकड़े में उपन्यास के हिस्सों से परिचित हूँ। उपन्यास के कथानक में आम आदमी की तरफ से देखे गए समय में, रचनाकार की समझ और लोकजीवन का आस्वाद जिस तरह से निह्त है। मुझे पूरा विश्वास है कि पाठकों के बीच इसका स्वागत होगा। प्रभू जी का चित्र आवरण को सुसज्जित करता है। सम्भवतः मैं पुस्तक मेले में इस उपन्यास की प्रति खरीदूंगा और देशनिर्मेही जी से निवेदन होगा कि कम से कम 10 प्रति इन्दौर के साथियों के लिए भेजने का कष्ट करें। सबको इन्तजार है। - प्रदीप मिश्र
प्रभू जी का चित्र उनके और तमाम चित्रों की तरह ही सुन्दर है| और मैं नहीं समझता कि संजीव की भरोसे मन्द राय को कोई नकार सकता है।
पुनश्च:, बधाई।
मानस , महाभारत के कथानको पर केंद्रित अनेक महाकाव्य , उपन्यास हिन्दी जगत की पूंजी हैं , उसी क्रम में स्वागत है आपके उपन्यास का ...
आवरण अनुकूल है
neela avaran khoobsoorat hai...bheetar jane ke liye coun down shuru ho chuki hai. shubhkamnaen.
यह जानकर अच्छा लगा कि इसकी प्रति पुस्तक मेले में प्राप्त हो सकेगी। डिजाइन बहुत ही आकर्षक बना है।
बधाई...
aap sab ko hardik dhanyavaad.
बहुत बधाई। निश्चित ही आवरण आकर्षक है। पुस्तक के लिए कह दिया है, मिल जाएगी।
फुटकर अंश पढ़ें हैं और दिलचस्पी जगाते हैं।
संजीव जी की टिप्पणी महत्वपूर्ण है।
वैसे तो पाखी में पढ़कर ही समझ में आ गया था की रचना कुछ खास होगी मगर संजीव जी की समीक्षा पढने के बाद तो अब उपन्यास पढने की लालसा तीव्र हो उठी है , जल्द ही पढता हु फिर आपको अपनी राय दूंगा वैसे कवर बहुत बढ़िया बन पड़ा है इसके लिए प्रभु जी बधाई के पात्र है ,,,,,
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