लिखो, काटो...फिर लिखो, फिर काटो। इसका क्या कोई अंत है। अंतत: यही सोचकर उपन्यास उत्तर वनवास का अंतिम वाक्य अंतिम बार लिख कर खुद को मुक्त किया। फाइनल स्क्रिप्ट आधार प्रकाशन के संचालक श्री देश निर्मोही जी के पाले में पहुंच गई है। देश जी का कहना है कि जनवरी तक छाप कर ठिकाने लगा देंगे।
उपन्यास का आवरण चित्र सुपरिचित चित्रकार और कहानीकार प्रभु जोशी का है।
उपन्यास का एक अंश साहित्यिक पत्रिका पाखी के दिसंबर अंक में प्रकाशित हुआ है, जिस पर काफी उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं।
एक और अंश साहित्यिक पत्रिका गुंजन के आगामी अंक में आने वाला है।
सब कुछ सामान्य रहा तो बहुत जल्द किताब आपके हाथ में होगी और मेरा सिर कढ़ाई में...
21 comments:
बधाई।
abhinandan.........
shubh kaamnaayen !
badhai sweekaren. ab intjar rahega padhne ka bas.
बधाई।
intzaar hai...
वाह्ह्ह अ आ
इतने दिन बाद
फक़त एक खबर? कविता दो कविता !
bahar haal upanyaas ke lie badhaaee.
इन्तजार रहेगा...शुभकामनाएँ.
बधाई हो सर,
एक प्रति हमारी एडवांस में बुक कर दें...
आप विश्वास करेंगे? अभी थोड़ी देर पहले ही पाखी पे आपका ये उपन्यास अंश पढ़ा और सोचा कि अभी आपको आपके ब्लौग पर जाकर बताता हूँ। देखा तो आपने इसी की चर्चा छेड़ रखी है।
खूब सारी शुभकामनायें उपन्यास के लिये!
ek kaam jaroor karna pls ki proof dhang se dikhva lena. aajkal is baare men prakashakon ka bura haalhai. Desh abhi-abhi eX Sarkaari hue hain.
बहुत दिनों से इस उपन्यास का इंतज़ार था सर, अब उम्मीद है की जनवरी में इसकी ताजा प्रति पढने का मौका मिलेगा...इस बार की पाखी नहीं खरीद पाया, लेकिन अब जरूर खरीदूंगा...|
बधाई!
अरे वाह! बधाई हो बधाई!
ARSE BAAD AAPKO BLOG PAR DEKH ACHCHA LAGA...BADHAYEE, SHUBHKAMNAEN AUR INTZAAR
aur haan sheershak achcha hai likh hi dala antim vakya antim baar...
बहुत अच्छी खबर सुनाई। शुभकामनाएँ।
बधाई।
वाह! बधाई हो सर आपको...अब तो इंतजार है.
Congratulation... now celebration !!!!
धन्यवाद मित्रो! आपकी टिप्पणियों से उत्साह बढ़ा है। आगे भी इसी तरह प्रेम बनाए रखेंगे।
'Uttar Vanwas' ke liye badhai.Prabhu Joshi dwara srijit mukhyaprishtha bahut bhaya.... Ratan Chand 'Ratnesh', Chandigarh
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