ये तेरा अँधेरा है, वो मेरा अँधेरा
हर दिल में उतर जायेगी जज्बात की तरह
हो जाए अगर शायरी भी बात की तरह
सूरज है दफ्न फातिहा पढ़ता है अँधेरा
आए न कोई रात यूं गुजरात की तरह
महंगा है इतना सच कि खरीदार नहीं हैं
बाज़ार में कोई कहाँ सुकरात की तरह
गाज़ा का मुसलमां हो या कश्मीर का हिंदू
हर मौत है, इंसानियत की मात की तरह
ये तेरा अँधेरा है, वो मेरा अँधेरा
बांटो न यूं ज़ख्मों को जात-पात की तरह
इस शहर के पत्थर भी होते हैं तर बतर
बरसो तो जरा टूट के बरसात की तरह
सूरज का रंग लाल और लाल दिखेगा
लिखने लगोगे रात को जब रात की तरह
-अरुण आदित्य
34 comments:
ye huee n schchi bat...bahut achchha sir g..
bahut badhiya. khoob dikh raha hai laal rang. lekin ghaza wale kale ribbin ka rang nazar nahi aaya.
बहुत ही उम्दा गज़ल। बहुत बधाई।
आप खूब विविधताएँ दिखा रहे हैं. ग़ज़ल अच्छी लगी. सुकरात वाला इस्तेमाल अच्छा लगा..कहते हैं कि सुकरात एक बार बाज़ार में खुश होकर कहने लगे कि यहाँ क्या एक से बढ़कर एक चीजें हैं और मुझे किसी एक भी जरुरत नहीं है
बहुत मज़ा आया - हालात की ग़ज़ल - बड़ी अच्छी - मनीष
andheron ke saudaagar, benaami tippanikaron ko bhi padhna chahie
सूरज है दफ्न फातिहा पढ़ता है अँधेरा
आए न कोई रात यूं गुजरात की तरह
&&&
इस शहर के पत्थर भी होते हैं तर बतर
बरसो तो जरा टूट के बरसात की तरह
दिल खुश हो गया भाई साहब। बडे दिनों बाद एक उम्दा गजल पढने को मिली। वैसे पूरी गजल का एक एक मिसरा अपने आप में एक एक कहानी लिए हुए है। मैं आपकी सोच को सलाम करता हूं।
vishnu nagar ji ne kafi dinon baad apne blog mein kavitayen dee hain..dekhiyega
jaroor dekhunga. main aksar unke blog par chakkar laga aata hun.
आदित्य जी,
बेहतरीन ग़ज़ल !
लिखने लगोगे रात को जब रात की तरह .
इस बात पर ये शेर याद आया -
जो भी हो सूरत-ए-हालात कहो चुप न रहो
रात अगर रात हो तो रात कहो चुप न रहो
अच्छा लगेगा आपके भाव -विचारों के सिंधु में अवगाहन करना .
Badhai, aise hi behatar aur saral gazalei likhate raho aur ham padhate rahen
- Pradeep Kant
गाजा का मुसलमां हो या काश्मीर का हिंदू।
अरूण आदित्य जी, बडा बुरा वक्त चल रहा है आजकल। सरमायो ने लाशो को भी कौमो के आधार पर बाटना शुरू कर दिया है। दोनो ओर से लाशे गिनी जा रही है। भाई मौते तो मौते होती है चाहे हिंदू की हो या मुसलमां की या किसी ख्रिस्ती या यहूदी की। पर जब से इस कमबख्त दक्षिणपंथी फासीवाद व सांप्रदायिकता के साप ने फिर से अपना फन फैलाया है दुनिया का पहिया उलटा घुमता जान पडता है। एक दंरिदा जितना ताकतवर हो रहा है उतना ही दुसरे को भी करता जा रहा है।
आज गाजा सदी के सबसे भयावह मानवीय त्रासदी के द्वारे खडा है, जार्ज हबाश के हनोईयो को हम सब तरक्कीपसंद लोगो की मदद की संख्त जरूरत है। कम से कम अब तो ज़ख्मों का यूं बांटना बंद हो।
भाई गाजा के लोगो की ही तरह हमारे अपने देश के किसान भी आज अपने अस्तित्व की लडाई लड रहे है, हर आधे घंटे में एक किसान आत्महत्या कर रहा है। गाजा की जनता की भांति उसका भी रसद बंद कर दिया गया है, वह भी अपने वेस्ट बैंग से जुदा है। सोया चौपाले आबाद हो रही है, गांवो की चौपाले कर्बिस्तानो में बदल रहीं है। कभी गांवो की चौपालो से रूदालिया के रूंदन को भी प्रतिध्वनित किजीये, आपकी कलम में बहुत ताकत है।
पल दर पल रात अंधेरी होती जा रही है, हर-एक पल सूर्ख लाल सूरज के उदय के इंतजार में।
कबीरा
अरुण आदित्यजी सन्डे आनन्द मे आपके बारे मे पढकर खुशी हूई आप जैसे व्यक्तित्व के बारे मे जानकर जीवन उर्जा कई गुना बढ जती है।
आपने अपने व्यतव्य मे लिखा है कि इन प्रयासो से क्रन्ति कि कल्प्ना करना अतिश्योक्ति होगी किन्तु "अगर प्रयास दिल से किया जाये तो सार्थक जरूर होता है"। आज भी चौरहो पर खडे होकर पुरे विश्व के घटनाक्रमो पर गहन चिन्तन करने वालो कि कमी नहि है किन्त् उनका उद्द्येश वहि समाप्तहो जाता है ।यदी ब्लोग को ईस श्रेणी("टाईम पास") से उपर उठाने की कोशिश की जाये तो वो दीन भी दूर नही जब ब्लोग भी एक नये दुनिया का भविष्य लीखेगा।ईसके लिये आव्श्य्क्ता है ईसे प्रचारित करने की तथा एक उर्प्युक्त "मार्गदर्शक" बनाने की ।
जयहिन्द
हरे प्रकाश, हिल्सा, अविनाश, धीरेश, परेश, मनीष, अबरार, प्रदीप कान्त , डॉक्टर चंद्र कुमार जैन और खामोश साहब, हौसला अफजाई के लिए आप सब का शुक्रिया।
ek achi rachna ke liye badhai.
बहुत अच्छी लगी ग़ज़ल। इसे पढ़कर एक दूसरी ग़ज़ल याद आ गई। रचनाकार का नाम तो याद नहीं,पर ग़ज़ल कुछ ऐसी थी :
अपनी डफली अपना सरगम, अपने में दीवाने लोग
रिश्तों के टूटे दर्पण में, सबके सब बेगाने लोग
साहिल कश्ती चप्पू नाविक, डोरी लंगर लग्गा पाल
फिर दरिया की बात चली तो फिर आए बहकाने लोग
कांटों का मौसम तो हमने तनहा तनहा पार किया
फूलों के मौसम में आए हमको गले लगाने लोग
सच को सच कहने का यारो, जब हम पर तोहमत आया
गली गांव शहर से दौड़े, फिर पत्थर बरसाने लोग
बहुत अच्छे आदित्य जी !
सब कुछ अच्छा!
उधर नौएडा के अमर उजाला के किसी गलियारे में कल्लोल टकराए तो उसे मेरी याद दिलाइएगा !
सर जी मैं अगली पोस्ट का इंतजार कर रहा हूं। रोज यही सोच कर आपके ब्लाग पर आता हूं कि आज कुछ मिलेगा। अब और इंतजार न कराइए।
gazal padhate huye mujhe ramkaliya yad aa rahee thi. Raat ko raat ki tarah likhne ki tameej aajkal kam ho rahi. Chhand ke to tum pahle se ustad ho. Is ustadee ko barkarar rakhna.
भाई अरूण,
अगली पोस्ट कब डालोगे?
- प्रदीप कान्त
achhi ghazal hai janaabe aali. lage raho.
कुछ तो कहिए कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ
..अब इत्ता भी इंतजार न कराइएगा
विजय गौर, अनुराग अन्वेषी, शिरीष जी,प्रदीप और प्यारे गीत चतुर्वेदी, हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया।
>सूरज है दफ्न फातिहा पढ़ता है अँधेरा
>आए न कोई रात यूं गुजरात की तरह
बहुत खूब ।
कभी वक्त मिले तो ईकविता की तरफ़ देखियेगा :
http://launch.groups.yahoo.com/group/ekavita/
अरुणं जी ब़ज़ल बहुत अच्छी लगी...मेरी आवाज़ में है तू शामिल/ तेरे होंठों से बोलता हूं मैं....अब तो एक बार फिर मिलना पड़ेगा...मुकुल सरल
अनूप जी, मुकुल जी बहुत बहुत शुक्रिया।
बहुत खूब
बहुत बढिया अरूण जी
rajesh roshan ji, manjula ji, aap sab ka hriday se aabhari hoon.
सर, गजल दिल को बहुत गहराई से छू गयी...
बहुत बढ़िया ग़ज़ल! बहुत कम ग़ज़लें लिखी जाती हैं जो आज के समय को इतनी बारिकी से परखें।
बधाई!
अरुण आदित्यजी
आज के हालात की ग़ज़ल - बड़ी अच्छी लगी.
"सच कहने को कहते हैं सभी,
बात कहने का भी तो हुनर चाहिए."
आपके ब्लॉग ने मुझे भी ब्लॉग्गिंग की इच्छा जगा दी.
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