खाली है
कितना प्रतिभाशाली है
काम नहीं है, खाली है
केवल फल से मतलब है
कैसे कह दूँ माली है
थोड़ा और दहेज़ जुटा
बिटिया तेरी काली है
तुझसे कोई बैर न था
फ़िर क्यों आँख घुमा ली है
फल आने का मौसम है
पेड़ बेचारा खाली है
बाजीगर
लफ्जों का बाजीगर है
कब्जे में पूरा घर है
तेरा हाँ..हाँ..हाँ करना
लालच होगा, या डर है
तू मुझसे क्या छीनेगा
धरती अपना बिस्तर है
उससे कैसी उम्मीदें
पैदाइश से बेपर है
देश हुआ सब्जी मंडी
लाभ में ऊंचा स्वर है
- प्रताप सोमवंशी
20 comments:
कितना प्रतिभाशाली है। ये लाइनें तो हम लोग ऐसे ही बोल लेते हैं।
प्रतापजी ने ऐसी कई जबरदस्त लाइनें लिखी हैं।
ऐसी ही लाइन है
रियासत जब भी ढहती है नवासे दुख उठाते हैं
कहीं पंचर बनाते हैं कहीं तांगा चलाते हैं
अच्छी और असरदार गज़ल हैं , प्रताप जी से परिचय करवाने के लिये धन्यवाद ।
प्रतात जी के रचनात्मक ताप से
सरोकार पहले भी रहा है
लेकिन आपकी मौज़ूदा पोस्ट में
जारी की गईं उनकी कविताओं का
आज भी समय-सापेक्ष होना बड़ी बात है.
फल के मौसम में पेड़ का
खाली होना या उसके साए में ही
पले-बढ़े लोगों के हाथों उसका बेदखल होना
आज के दौर में आम बात है!
और हाँ पैदाइश से बेघर की खातिर
मुझे भी ये कहना है -
ये ऐसी ज़मीं है जहाँ रहने वाले
बखुद अपने घर का पता पूछते हैं!
प्रताप जी ,अवॉर्ड के लिए आपको बधाई.
पोस्ट के लिए अरुण जी आपको.
लफ्जों का बाजीगर है
कब्जे में पूरा घर है...
उस वक्त ये पढीं और ये दो पंक्तियाँ जुबान पर चढ़ गयीं और इतना वक्त बीतने पर आज भी इन्हें अक्सर बोलता हूँ. बाद प्रताप जी से मुलाकात हुई और उनके अपनत्व का अहसास मिला पर यह नहीं पता था की ये जो पंक्तियाँ बोलता हूँ, उनकी हैं...धन्यवाद आपने मेरी इन पंक्तियों का कवि तलाश दिया
kya kabirana andaj hai somvanshi ji...kuchh aur kvitaen padhvaeeye inki arun ji....achchha lga...
shukriya....sundar panktiyaan padhvaaney ke liye ARUN ji. HARSHVARDHAN ji ne jo panktiyaan share ki hai laajavaab hain...
अरूण भैया बहुत अच्छी कवितायें है...प्रताप जी जैसे प्रतिभावान लोग दुनियाँ में कम ही हैं...ब्लोग पर पढ़वाने के लिये बहुत-बहुत शुक्रिया...
प्रताप जी से कई बार निवेदन किया कि अपनी कविताएं पढ़ने को दें,
आज यहां उनकी लिखी पंक्तियां पढ़ कर अच्छा लगा...
प्रताप जी की कविताएं अच्छी लगीं। पत्रकार और कवि एक साथ होना मुश्किल होता है। अरूण जी आपसे ऐसे उम्मीदें आगे भी रहेंगी। पंकज
achhi kavita hai. us waqt sabrang me padhi thi aur hamare mumbai wale group me "kitna pratibhashali hai, kaam nahi hai khali hai" wali lines muhavare ki tarah istemaal hoti theen. lekin ye yaad nahi tha ki ye pratap ji ki hain. badhiya. aap dono ko hi badhai.
तू मुझसे क्या छीनेगा
धरती अपना बिस्तर है
अच्छी ग़ज़लें। मुझे किसी शायर का नाम ध्यान नहीं रहा पर एक शेर याद आ गया
नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है
उनके आगोश में सर हो ये ज़रूरी तो नहीं
प्रदीप कान्त
मधु कान्त
हर्षवर्धन जी, अनूप जी, डाक्टर जैन, धीरेश, हरे प्रकाश, पारुल, सुनीता, संदीप, डाक्टर पंकज, गीत और प्रदीप कान्त, मधु कान्त, इतनी अच्छी अच्छी टिप्पणियों के लिए शुक्रिया। आपकी भावनाएं मैं प्रतापजी तक पहुँचा दूंगा।
अरूण जी, जिस स्नेह से आपने मेरे सम्मान को मित्रों के बीच साझा किया है, अभिभूत हूं। चौदह बरस पहले प्रकाशित रचना मित्रों ने स्मृतियों में सहेज रखी है, मेरे लिए बरसों बरस खुश रहने की वजह है। आपके ब्लाग पर कई नए-पुराने मित्रों की रचना और खुद के बारे में टिप्पणी भीतर से सुख के साथ हर तरह से जिम्मेदारी के अहसास को बढ़ाती है।
अपनी ओर से तो एक पुरानी गजल के हवाले से यही कहना चाहूंगा-
कोशिश यही कि उम्र भर नीयत बची रहे.
पुरखों की कमाई हुई दौलत बची रहे.
इक मां को भला और अधिक चाहिए भी क्या,
उसके सभी बेटों में मुहब्बत बची रहे.
pratap somvanshi
somvansshi jee, sirf sukriya se nhi chlega...kuchh aur kvitaen aani chahiye...sochiye hm intjar me tahal rhe hain
Priy Bhai,
www.kavitakosh.org per meri 28-30 rachnayen hongi..wanha jaa kar padhengey to accha lagega.
pratap somvanshi
प्रताप जी की पंक्ति -
पुरखों की कमाई हुई दौलत बची रहे
पर लीजिए कुछ और अशआर -
मुनव्वर राणा के ,जो मुझे बरबस याद आ गये -
नये कमरे में अब चीज़ें पुरानी कौन रखता है
परिंदों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है
हमीं गिरती हुई दीवार को थामे रहे वरना
सलीके से बुज़ुर्गों की निशानी कौन रखता है.
प्रताप जी वाकई इन कविताओं की हर लाइन आपकी बाजीगरी का खुद ब खुद बयान करती है। कितनी सरल और सुंदर पक्तियां हैं। जितनी तारीफ की जाए कम है। अरूण जी का भी तहे दिल से आभार व्यक्त करता हूं जिनकी बदौलत एक महान कवि की रचनाएं पढने को मिलीं। प्रताप जी एक बार और बधाई।
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