Tuesday, March 17, 2009

एक युवा कवि के पहले कविता संग्रह का स्वागत करें


युवा कवि विजय गौड़ का कविता संग्रह सबसे ठीक नदी का रास्ता हाल में ही प्रकाशित हुआ है। उसमें कई ऐसी कविताएं हैं जो दिल को छू जाती हैं। उसी संग्रह से कुछ ऐसी ही कविताएं पेश हैं। पढ़ें और अगर अच्छी लगें तो विजय को बधाई दें। अगर संग्रह खरीदना चाहें तो आप सीधे विजय से संपर्क कर सकते हैं।


पिता का नाम

एक
बर्तनों को साफ करते हुए
मां कई बार सहला देती है
पिता
को उनके नाम से
जबकि
पिता चारपाई पर लेटे हैं

बर्तनों पर खुदा
पिता
का नाम
हर
बार घिसता है
और
बर्तनों पर की
पीली
चमक-सा
पिता के चेहरे पर
बहुत
कोशिशों के बाद
खिंची
मुसकान-सा
चमकता है पिता का नाम ।


दो


पिता का नाम
बर्तनों पर ज्यों का त्यों है
सिर्फ
नहीं हैं पिता
पिता
का नाम ही
चल
रहाहै
बर्तनों के साथ-साथ ।


तीन


अभी तो मां जिन्दा है
जो
सहला देती है
पिता को उनके नाम से
पर
जब नहीं होगीं मां
क्या
तब भी सहलाया जायेगा
पिता का नाम ?


चार

ये बर्तन इतने पुराने हो चुके हैं
कि अब
नहीं चल सकता इनसे काम
खरीदनें
ही होगें
अब
नये बर्तन


पर क्या उन पर भी
लिखा
जायेगा
पिता
का नाम
जबकि पिता नहीं हैं
मांभी नहीं
सिर्फ
हूं में


विजय गौड़ का परिचय
जन्म मई 1968, देहरादून।शिक्षा एम.. हिन्दी।रचनाकर्मः रंगकर्म, पहाड़ों के जन जीवन को जानने समझने के लिए दुर्गम पहाड़ीक्षेत्रों की यात्रायें, शतरंज खेलना। कविता, कहानी, समीक्षात्मक टिप्पणी,यात्रा वृतांत और जो कुछ इन सब में अट पा रहा हो, पर जिसेलिखना जरुरी जान पड़ रहा हो, लिखना। कुछ रचनायें समयांतर, पहल, प्रगतिशील वसुधा, कथन, वागर्थ, कृति ओर, वर्तमान साहित्य, कथादेश, संडे-पोस्ट, शब्द आदि पत्र-पत्रिकाओं में जगह पाती रही। 1989 से 2006 तक लिखी कविताओं का संग्रह ‘‘सबसे ठीक नदी का रास्ता’’ प्रकाशित। 1989-90 के शु3आती दौर में कविता फोल्डर ‘‘फिलहाल’’ का सम्पादन। वर्तमान में इंटरनेट की चिट्ठाकारी ‘‘लिखो यहां वहां’’ चिट्ठे पर समय-समय में लेखन और अन्य रचनाकारों की रचनाओं का प्रकाशन।

चिट्ठे का लिंक: http://likhoyahanvahan.blogspot.कॉम संप्रति आर्डनेंस फैक्ट्री देहरादून में कार्यरत।ें

संपर्क सी-24/9 आर्डनेंस फैक्ट्री एस्टेट, रायपुर, देहरादून- 248008।फोन घर. 0135-2789426, मो. 09411580467



24 comments:

रंजना said...

Vijay ji ko badhai..

Bahut hi Sundar Bhavpoorn kavitayen hain.

Prakash Badal said...

अरुण भाई,
बहुत ही बढ़िया इस संग्रह को पढने के लिए आपने उत्सुकता पैदा कर दी है,मैं अभी मंगवऊँगा। शुक्रिया।

नीरज गोस्वामी said...

सबसे पहले तो विजय जी को बधाई...उनकी छोटी छोटी रचनाएँ बहुत गहराई लिए हुए हैं...किताब जल्द ही मंगवाई जायेगी....आप का शुक्रिया जानकारी देने का...
नीरज

संदीप said...

कविताएं अच्‍छी लगीं। विजय से देहरादून में मुलाकात हुई थी, वह एक लेखक के साथ ही संजीदा इंसान भी हैं।

डॉ .अनुराग said...

विजय जी नाम सुनकर ही खीचा चला आया .पहली दो कविताये अपने आप में ढेरो कथाये समेटे है...वैसे भी कविता वही है जो सबको अपनी सी लगी....उम्मीद है अपने साइन करके एक किताब वे हमारे दरवाजे भेजेंगे....उन्हें ढेरो बधाई

प्रदीप कांत said...

अभी तो मां जिन्दा है
जो सहला देती है
पिता को उनके नाम से
पर जब नहीं होगीं मां
क्या तब भी सहलाया जायेगा
पिता का नाम ?

चारों कविताओं में बर्तनों के माध्यम से पति के प्रति, पत्नी का प्यार और बेटे की सम्वेदना...!

विजय जी को बधाई और आपका आभार तो है ही.

विजय गौड़ said...

सर्व प्रथम तो अरूण जी आपका बहुत बहुत आभार जो आपने मेरी कविता पाठको तक को पहुंचने के लिये एक मंच दिया।
मित्रों पुस्तक की सीमित ही प्रतियां मुझे प्राप्त हुई थीं। इसलिए डाक से पुस्तक भेजना तो संभव नहीं हो पा रहा है। हां कुछ मित्रों को पुस्तक पी डी एफ़ फ़ार्मेट में मैं मेल जरूर कर सकता हूं। यदि मित्र अन्यथा न लें और कविताओं को सच में पढना चाह्ते हों तो मुझे मेल करें- vggaurvijay@gmail.com मै पुस्तक पी डी एफ़ फ़ार्मेट में जरूर भेजूंगा।

Ek ziddi dhun said...

संग्रह की जानकारी शिरीष भाई से मिल चुकी थी। आपने कविताएं पढ़वाकर संग्रह के प्रति बेचैनी बढ़ा दी।

mamta said...

पहले तो विजय जी को बधाई ।

हरेक लाइन बहुत कुछ बयाँ करती हुई ।

Dr.Bhawna Kunwar said...

विजय जी को हमारी ओर से भी बधाई... रचनायें इतनी गहरी हैं कि कई-कई बार पढ़ा...

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

भाई विजय गौड़ को बधाई प्रथम कविता-संग्रह प्रकाशित होने पर. अरुण आदित्य जी का धन्यवाद कविता-संग्रह को फ़रोग देने के लिए. कवितायेँ तो हैं ही नाजुक रिश्तों की.

Priyankar said...

’एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ ’

बधाई !

कोलकाता में हुई मुलाकात में कवि ने कहा था कि आने वाला है. आ गया है यह आपने सूचित किया सो आपको भी बधाई!

योगेंद्र कृष्णा Yogendra Krishna said...

विजय जी ने अपनी इस पुस्तक की पीडीएफ़ फाइल मुझे भेजी है, पढ़ने के बाद मैं उन्हें अपनी प्रतिक्रिया भेजूंगा। फिलहाल उन्हें मेरी बधाई।

विवेक भटनागर said...

घिस चुके हैं जिस तरह से
बर्तनों पर नाम
वैसे जिंदगी भी घिस रही है.
...पितृ-सत्ता भी.
मगर इस नाम का रहना ज़रूरी है
दिलों में
ना कि फूटे बर्तनों में.

varsha said...

dil ko gahre tak choo janewali vijayji ki kavitaen padhane ka bahut bahut shukriya arunji.

Ashok Kumar pandey said...

स्वागत..
विजय जी को पहले भी padhata रहा हूँ.संकलन के लिए बधाई.ज़रूर पढ़ना चाहूँगा

prakashan to bataiye..aur mulya bhi.

Tanveer Farooqui said...

Vijay ji ko badhaiyna ore aap ne unka parichay karvaya isliye aap ko bhi badhaiyan ....
ek arsa huva aapse mulaquat ko...ab aapke blog par mulaquat hoti rahegi...

cartoonist ABHISHEK said...

अन्दर गहरे भीतर तक सीधे उतर गयी कविता.......
इस युवा कवि को मेरी शुभकामनायें...

Pankaj Narayan said...

जमीन से जुड़ी...रिश्तों की मिठास...अच्छी लगी अच्छी कविता पढ़वाने के लिए शुक्रिया..अरुण जी। प्यास बढ़ गई, कवि को और पढ़ना पड़ेगा।
पंकज नारायण

अजेय said...

pdf nahi khulta tha . aaj khula hai saari kavitaayen padhi. mere poorvaj, barish me bheegti ladki,bhed charvahe.....padh kar bhara bhara sa mehsoos kar raha hoon

सुभाष नीरव said...

नमूनार्थ विजय भाई की कविताएं पढ़वाने के लिए धन्यवाद भाई अरूण जी। बहुत ही प्रभावशाली कविताएं हैं, सीधे ह्र्दय को स्पर्श करतीं ! बधाई !

Anonymous said...
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Anonymous said...

hiya


just signed up and wanted to say hello while I read through the posts


hopefully this is just what im looking for, looks like i have a lot to read.