Sunday, May 11, 2008

अम्मा की चिट्ठी

( शहर को खून से लथपथ कर रथ आगे बढ़ चुका है। अब शहर में कर्फ्यू है। इसी कर्फ्यू और दंगाग्रस्त शहर में बेटा फंसा हुआ है। माँ गाँव में है। उसके पास पहुँचती खबरों में दहशत है, आशंका है।दिल्ली में वी पी सिंह की सरकार लाचार है और गाँव में माँ । उसी दौर में लिखी गई थी यह कविता।लिखने के बाद मुझे ख़ुद यह सामान्य तुकबंदी जैसी ही लगी थी परन्तु इसमें पता नहीं ऐसा क्या है कि इसे पढ़कर मेरे मित्र और कला समीक्षक राजेश्वर त्रिवेदी की माँ की आँखें भर आई थीं। कवि संदीप श्रोत्रिय की माँ को भी यह कविता बहुत पसंद थी। चंडीगढ़ के पंजाब कलाभवन में इस कविता को सुनाकर मंच से उतरते ही वरिष्ठ नाटककार और जन संस्कृति मंच के पूर्व अध्यक्ष गुरशरण सिंह ने मुझे गले लगा लिया था।)


अम्मा की चिट्ठी



गांवों की पगडण्डी जैसे

टेढ़े अक्षर डोल रहे हैं

अम्मा की ही है यह चिट्ठी

एक-एक कर बोल रहे हैं



अड़तालीस घंटे से छोटी

अब तो कोई रात नहीं है

पर आगे लिखती हैअम्मा

घबराने की बात नहीं है



दीया बत्ती माचिस सब है

बस थोड़ा सा तेल नहीं है

मुखिया जी कहते इस जुग में

दिया जलाना खेल नहीं है



गाँव देश का हाल लिखूं क्या

ऐसा तो कुछ खास नहीं है

चारों ओर खिली है सरसों

पर जाने क्यों वास नहीं है



केवल धड़कन ही गायब है

बाकी सारा गाँव वही है

नोन तेल सब कुछ महंगा है

इंसानों का भाव वही है



रिश्तों की गर्माहट गायब

जलता हुआ अलाव वही है

शीतलता ही नहीं मिलेगी

आम नीम की छाँव वही है



टूट गया पुल गंगा जी का

लेकिन अभी बहाव वही है

मल्लाहा तो बदल गया पर

छेदों वाली नाव वही है


बेटा सुना शहर में तेरे

मार-काट का दौर चल रहा

कैसे लिखूं यहाँ आ जाओ

उसी आग में गाँव जल रहा



कर्फ्यू यहाँ नहीं लगता

पर कर्फ्यू जैसा लग जाता है

रामू का वह जिगरी जुम्मन

मिलने से अब कतराता है



चौराहों पर वहां, यहाँ

रिश्तों पर कर्फ्यू लगा हुआ है

इसकी नजरों से बच जाओ

यही प्रार्थना, यही दुआ है



पूजा-पाठ बंद है सब कुछ

तेरी माला जपती हूँ

तेरे सारे पत्र पुराने

रामायण सा पढ़ती हूँ



तेरे पास चाहती आना

पर न छूटती है यह मिटटी

आगे कुछ भी लिखा न जाए

जल्दी से तुम देना चिट्ठी।


- अरुण आदित्य

(मेरे पहले कविता संग्रह 'रोज ही होता था यह सब' से)




16 comments:

Udan Tashtari said...

वाकई, अद्भुत रचना है. पता नहीं क्यूँ, कुछ भावुक हो उठा. अति सुन्दर. बधाई.

अनूप शुक्ल said...

बहुत अच्छे।

mamta said...

बहुत ही भावपूर्ण रचना।

sudeep thakur said...

अरुण जी,

बहुत प्यारी और धारदार कविता है. हालात कमोबेश आज भी वैसे ही हैं. बधाई!

deo prakash choudhary said...

प्यारी कविता!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

सरल गहरे से उठी
यह कविता,
मन को छू गयी!
बधाई आपको -
-- लावण्या

Dr. Chandra Kumar Jain said...

अम्मा की चिट्ठी के बहाने
आपने आशा,दिलासा,प्रत्याशा
के बावज़ूद हालत के मद्देनज़र
असमंजस को जस का तस ऊडेल दिया है.
===========================
ऐसे सर्जक और सृजन दोनों को
कोई भी गले से,हृदय से लगाना चाहेगा.
मैं भी अपवाद नहीं.
हार्दिक बधाई.....इस
मर्म उदघाटक रचना के लिए.

डा.चंद्रकुमार जैन

Arun Aditya said...

समीर लाल जी, अनूप जी, प्यारे सुदीप भाई, ममता जी, प्रिय देव्प्रकाश, लावण्या जी, और डॉक्टर जैन साहब, आप सब का तहे-दिल से शुक्रिया।

Geet Chaturvedi said...

कविता ही ऐसी है कि गले लग जाने को दिल करे. अपनी ही जमीन पर विस्‍थापन झेल रहे लोगों, एक साथ दो-दो, तीन-तीन घरों को देख रहे लोग अपनी अनलिखी चिट्ठियों में ऐसे ही भावुक होते हैं.
दो-तीन बार पढ़ी है यह कविता, अलग-अलग समय, पर बार-बार नैयर मसूद की कहानी 'ताउस चमन की मैना' याद आ जाती है. क्‍यों? पता नहीं, उसमें तो ऐसा कोई वाक़या भी नहीं. शायद ट्रीटमेंट बहुत subtle है इसलिए.
ख़ैर, शुभकामनाएं ढेर सारी.

Arun Aditya said...

गीत भाई बहुत बहुत शुक्रिया।

प्रदीप कांत said...

बधाई, कविता का एक एक बन्द एक एक अनमोल मोती जैसा है।


- प्रदीप कान्त

Sandeep Singh said...

गांवों की पगडण्डी जैसे

टेढ़े अक्षर डोल रहे हैं

अम्मा की ही है यह चिट्ठी

एक-एक कर बोल रहे हैं....
बहुत-बहुत बधाई। साथ ही माफी, इसलिए कि हिंदी ब्लॉगिंग की अभी बेहद छोटी दुनिया में आप तक जरा देर से पहुंच पाया। इस ठीहे पर अब अकसर आना होगा। फूली सरसो में वास भले ही नहीं थी पर ब्लॉग पर आने के बाद वो सुगंध नथुनों में घुसती चली गई।

Arun Aditya said...

संदीप जी और प्रदीप जी, आप दोनों को भी बहुत बहुत धन्यवाद। आते रहना।

Babban K Singh said...

अरुण भाई, वाकई दिल को छू गई आपकी यह कविता। कई बार रचनाकार को रचना प्रकिया के दौरान उसकी महत्ता समझ में नहीं आती। शायद इसके बारे में यह कहना ही उचित होगा।

cartoonist ABHISHEK said...

tum mere priy kaviyon me ho....

तसलीम अहमद said...

dil ko chho gayi kavita. maa aur gao dono ko yaad ker aansu aa jaate hain, lekin majboori ki shaher ke jaal me fans gaya hun.